पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत लंबे समय से उत्तराखंड में पर्दे के पीछे चल रहे हैं। इस बार राज्यसभा की टिकट मिलने की आस धूल होने के बाद सवाल यह उठ रहा है कि क्या भाजपा ने पूर्व सीएम को शोपीस मात्र बना के रख दिया है।
राज्यसभा से भी टिकट साफ होने के इस मुद्दे पर तमाम चर्चाएं तेज हो रही हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा हाईकमान नहीं चाहता है कि सीएम पुष्कर सिंह धामी को किसी नेता ने से किसी तरह की कोई चुनौती मिले।
2017 में सीएम बनने के बाद त्रिवेंद्र रावत ने चार साल तक राज किया । साथी मंत्रियों के साथ ही आरएसएस के लोगों को भी त्रिवेंद्र से हर मामले में निराशा ही हाथ लगी। मार्च-2021 में त्रिवेंद्र अपनी सत्ता के चार साल का जश्न मनाने की तैयारी में थे। अचानक ही भाजपा हाईकमान ने उन्हें सत्ता छोड़ने का फरमान सुना दिया। हाईकमान ने उन्हें जश्न मनाने तक की मोहलत नहीं दी।
जिस पर पत्रकारों के द्वारा किए तमाम सवालो पर पूर्व सीएम ने यहां तक कह दिया कि मुझे क्यों हटाया गया इसका जवाब लेने दिल्ली तक जाना होगा।
इस प्रकरण के बाद से ही त्रिवेंद्र पर्दे के पीछे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें भाजपा ने कोई तरजीह नहीं दी। सियासी गलियारों में इस बात पर भी चर्चाए तेज रही कि आखिर चार साल तक राज्य की कमान को संभाले त्रिवेंद्र को विधानसभा का टिकट क्यों नहीं दिया। जिसके बाद खुद ही पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि मै ही विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहता।
अब बारी राज्यसभा की खाली हो रही एक सीट का चुनाव होना है। चर्चा तेज रही कि त्रिवेंद्र को टिकट दिया जा सकता है। राज्य भाजपा की ओर से भेजे गए पैनल में उनका नाम था भी। लेकिन हाईकमान ने उनके नाम को दरकिनार कर दिया और श्रीमती कल्पना सैनी को टिकट थमा दिया।
यह फैसला आते ही भाजपाई खेमे में फिर से चर्चा तेज हो गई कि क्या हाईकमान ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया है। शायद यही वजह है कि हाईकमान के स्तर से उन्हें कोई भी अहमियत नहीं मिल रही है। भाजपाई खेमे में चर्चा है कि हाईकमान ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को फ्री-हैंड दिया है। हाईकमान नहीं चाहता है कि किसी अन्य नेता से धामी को किसी भी तरह की कोई चुनौती न मिल सके।