त्रिवेन्द्र सरकार अपने ही मंत्रीयों और विधायकों के दबाव में फैंसले लेने को मजबूर
रिपोर्ट- जगदम्बा कोठारी
देहरादून। कोरोना महामारी के चलते संकट की इस घड़ी में त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा मौजूदा हालात को देखते हुए प्रदेश हित मे कड़े और सख्त फैंसलें न ले पाने का खामियाजा आज प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। प्रचंड बहुमत से राज्य में आई त्रिवेन्द्र रावत की डबल इंजन सरकार अपने ही मंत्रीयों और विधायकों के दबाव में फैंसले लेने को मजबूर है। अभी हाल ही मे त्रीवेंद्र सरकार ने कैबिनेट में सभी मंत्रियों और विधायकों की निधि में से अगले दो वर्ष के लिए एक करोड़ रूपये प्रति वर्ष कोरोना महामारी मे राहत के लिए काटे जाने का निर्णय लिया लेकिन जनता को आस थी कि सभी विधायक, मंत्री, पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की तर्ज पर पूरे वर्ष की राशि आपदा कोष मे जमा करवायेंगे।
अगले विधान सभा चुनाव को देखते हुए इस बहुत बड़ी राशि को विधायकों और मंत्रियों ने विकास कार्यों के लिए बचा कर रखा है। जिससे प्रदेश के आपदा राहत कोष मे लगभग 390 करोड़ रूपये का बड़ा अंतर आयेगा। इस बात का अंतर आप इन आंकड़ों से समझ सकते हैं। अभी तक प्रदेश मे प्रति विधायक को 3 करोड़ 75 लाख रूपये प्रति वर्ष विधायक निधि मिलती है और 70+1 विधायकों की कुल वार्षिक निधि लगभग 266 करोड़ रूपये है। इस हिसाब से अगले दो वर्ष के लिए राशि 532 करोड़ रूपये होने थी। लेकिन वर्तमान मे सरकार के 1 करोड़ प्रति वर्ष कटौती के हिसाब से यह रकम 142 करोड़ रूपये ही हो पायेगी। कुल मिलाकर सरकार के इस फैंसलें से प्रदेश आपदा राहत कोष मे लगभग 390 करोड़ की कमी आयेगी।
महामारी के समय और संसाधन विहीन 13 जिलों के छोटे से इस प्रदेश के लिए यह राशि बहुत बड़ी है। जहां पूरा देश इस समय विकास कार्यों को छोड़ महामारी से जूझने के लिए फंड एकत्र कर रहा है वही प्रदेश के मंत्री, विधायकों को अपनी विधान सभा क्षेत्रों मे विकास कार्यों के लिए बचाकर रखना प्रदेश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। विकास कार्य तो हालात सामान्य होने पर भी हो सकते हैं। सरकार की इन हरकतोॆ से साफ जाहिर है कि आगामी विधान सभा चुनाव को देखते हुए विधायकों के दबाव मे सरकार ने निधि से प्रतिवर्ष मात्र एक करोड़ रूपये कटौती का फैंसला लिया है। वहीं विधायकों के वेतन मे 30 फीसदी की मामूली कटौती की गयी है।
जिससे भी राहत कोष मे कुछ लाख रूपये ही जमा हो सकेंगे। जबकि विधायकों का भत्ता उनके वेतन का लगभग 10 गुना अधिक होता है। साथ ही दायित्वधारियों के वेतन और भत्ते मे कोई कटौती नहीं करने से राज्य को आपदा के समय इन दायित्वधारियों पर करोड़ों रूपये मासिक सलाना खर्च करना पड़ेगा। यह सब तब हो रहा है जब प्रदेश की माली स्थिति खराब है। वहीं पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश मे योगी सरकार ने सभी मंत्रियों और विधायकों के एक वर्ष की विधायक निधि प्रदेश आपदा राहत कोष मे जमा करवाने का प्रस्ताव पास किया है। योगी सरकार के इस फैंसले से उनके आपदा राहत कोष मे 1509 करोड़ रूपये की बडोत्तरी हुयी है।