उत्तराखंड विश्वविद्यालय के एक मामले में आए नए घटनाक्रम के अनुसार, एक छात्रा को बिना बीए पास किए ही एमए में प्रवेश दिया गया था। छात्रा की बैक परीक्षाएं देने की जरूरत थी, जो अंग्रेजी और मनोविज्ञान में हुई थीं। इसके बाद भी, उसे स्नातकोत्तर में दाखिला मिला।
कुमाऊं विश्वविद्यालय की नियमावली 2016 के अनुसार छात्रा का हर विषय में पास होना अनिवार्य था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विश्वविद्यालय ने वर्ष 2016 की परीक्षा की अंक तालिका वर्ष 2019 में जारी की है। जिसमें सीओपी लिखा था। अंक तालिका तीन साल बाद जारी किया जाना गंभीर विषय है। छात्रा को दूसरे साल की अंकतालिका 2018 में जारी की गई है। जिसमें उसे पास दर्शाया गया है।
उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग ने इस मामले की जांच करते हुए प्रकट किया कि छात्रा को तीन साल बाद ही अंक तालिका दिखाई गई, जिससे छात्रा में भ्रम पैदा हुआ। आयोग ने विश्वविद्यालय के कुलपति को छात्रा की समस्या को हल करने के निर्देश दिए हैं, जिसमें बैक परीक्षाएं लेने का भी समाहित है।
जांच रिपोर्ट के मुताबिक यह भी गंभीर विषय है कि तीसरे सेमेस्टर की अंकतालिका 2018 में एवं प्रथम सेमेस्टर की अंक तालिका वर्ष 2019 में जारी की गई है। छात्रा ने 2019 में एमए में दाखिला लिया और वर्ष 2021 में वह एमए कर चुकी है। इसकी उसे अंकतालिका जारी कर दी गई है। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि मामले में विश्वविद्यालय स्तर पर नियमों का पालन नहीं हुआ।
शिकायत पर आयोग ने गठित जांच समिति में विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों को शामिल किया है, जो इस मामले की न्यायिक जांच में सहायक होंगे। जांच समिति ने रिपोर्ट में बताया है कि विश्वविद्यालय ने नियमों का पालन नहीं किया है और छात्रा को देर से अंकतालिका जारी किया गया। इसके परिणामस्वरूप, छात्रा को अपनी पढ़ाई में भ्रम हुआ है। जांच समिति ने विश्वविद्यालय से न्यायोचित निर्णय की मांग की है।