निजी कंपनी को मिली परियोजना, लेकिन सॉफ्टवेयर रहा बेहद कमजोर
विश्वविद्यालय की ओर से जिस निजी कंपनी को ईआरपी (एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग) सॉफ्टवेयर विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई, उसने मात्र खानापूर्ति करते हुए सॉफ्टवेयर का निर्माण किया। प्रस्तुतीकरण के दौरान साफ हुआ कि न तो सॉफ्टवेयर में जरूरी फीचर्स मौजूद थे और न ही सभी आवश्यक मॉड्यूल्स बनाए गए थे। इसके बावजूद कंपनी को हर साल भुगतान जारी रहा।
जांच समिति गठित, 15 दिन में सौंपेगी रिपोर्ट
तकनीकी शिक्षा विभाग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए 5 सदस्यीय तकनीकी जांच समिति का गठन किया है। समिति की अध्यक्षता आईटीडीए निदेशक एवं आईएएस अधिकारी नितिका खंडेलवाल को सौंपी गई है। इसके अलावा समिति में राज्य सूचना विज्ञान अधिकारी (SIC), आईटीडीए के वित्त अधिकारी, आईआईटी रुड़की के एक प्रोफेसर और एक अन्य अधिकारी को शामिल किया गया है। समिति को 15 दिन के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है।
हर साल 2 करोड़ का भुगतान, टेंडर प्रक्रिया पर भी संदेह
सूत्रों के अनुसार, विश्वविद्यालय और निजी कंपनी के बीच हुए अनुबंध के तहत प्रति छात्र 567 रुपये की दर से हर वर्ष करीब 2 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। यह अनुबंध अब शासन स्तर पर निरस्त किया जा चुका है। इस भुगतान में भारी वित्तीय अनियमितता और लापरवाही सामने आई है। यहां तक कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर कंपनी से मिलीभगत का भी संदेह जताया जा रहा है।
डेटा होस्टिंग की जानकारी तक नहीं, तकनीकी परीक्षण भी नहीं हुआ
प्रस्तुतीकरण के दौरान यह भी सामने आया कि विश्वविद्यालय के रजिस्टर या किसी भी कर्मचारी को यह तक जानकारी नहीं थी कि सॉफ्टवेयर का डेटा कहां होस्ट किया गया है। इतना ही नहीं, तकनीकी समिति से परीक्षण कराए बिना ही कंपनी को भुगतान जारी रहा। वित्त अधिकारी ने इस पर आपत्ति भी जताई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
शासन ने लिया संज्ञान, जल्द खुलेंगे और भी राज
शासन ने पूरे मामले को गंभीर मानते हुए जांच के निर्देश दिए हैं। यदि जांच में अनियमितताएं सिद्ध होती हैं तो जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जा सकती है। तकनीकी शिक्षा की साख और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग से जुड़ा यह मामला आने वाले समय में और भी बड़े खुलासे कर सकता है।