उत्तराखंड में आयोजित 38वें नेशनल गेम्स को भले ही ऐतिहासिक सफलता बताया जा रहा हो,लेकिन इस आयोजन की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि इसे सफल बनाने वाले हज़ारों वॉलंटियर्स आज भी अपने हक के लिए भटक रहे हैं,जिन हाथों ने मेहमानों का स्वागत किया,जिन पैरों ने व्यवस्थाओं को दौड़-दौड़कर संभाला,जिन आंखों ने नींद त्याग कर आयोजन को सफल बनाया उन्हीं युवाओं को आज सरकारी बेपरवाही का शिकार बना दिया गया है।
हल्द्वानी, नैनीताल, लालकुआं और आसपास के इलाकों से आए युवाओं ने बिना किसी निजी लाभ की अपेक्षा के आयोजन में सेवा दी, उन्हें ₹2000 से ₹5000 तक के मेहनताने का वादा किया गया था,लेकिन आज आयोजन समाप्त हुए महीनों बीत चुके हैं,और ये युवा सिर्फ आश्वासन और ठंडे बहानों के सहारे छोड़ दिए गए हैं।
पूर्व छात्र संघ कोषाध्यक्ष कन्हैया भट्ट, जो स्वयं एक वॉलंटियर रहे, ने इस गंभीर मुद्दे को लेकर सांसद अजय भट्ट को ज्ञापन सौंपा है,ज्ञापन में कहा गया है

यह सिर्फ पैसे की बात नहीं है,यह युवा सम्मान, निष्ठा और राष्ट्र सेवा की भावना के साथ जुड़े थे,लेकिन अब यह आयोजन उनके लिए अपमान, अनदेखी और आर्थिक चोट में बदल गया है।
वॉलंटियर्स ने बताया कि आयोजन के दौरान उन्हें प्रशिक्षण, समय की पाबंदी, ड्यूटी शिफ्ट्स और कई बार बिना भोजन-पानी के काम करना पड़ा। लेकिन बदले में न कोई संपर्क, न प्रशंसा, न प्रमाणपत्र और न ही मेहनताना यह एक सुनियोजित प्रशासनिक उपेक्षा है।
उत्तराखंड युवा एकता मंच के संयोजक पीयूष जोशी ने तीखी चेतावनी दी है उन्होंने कहा हैं,अगर आगामी एक महीने में इन युवाओं को उनका मेहनताना नहीं दिया गया, तो हम सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे। सरकार को जवाब देना होगा कि क्या युवा सिर्फ आयोजनों की ‘इस्तेमाल की जाने वाली जनशक्ति’ हैं?
ये हालात एक बड़ा सवाल खड़ा करते हैं क्या नेशनल गेम्स की सफलता सिर्फ आयोजकों और अफसरों की तस्वीरों तक सीमित है?
जो युवा इसके असली नायक थे,उन्हें न मंच मिला, न मान, न धन,उनके साथ यह व्यवहार किसी सिस्टमेटिक शोषण से कम नहीं।
सरकार को अब निर्णय करना होगा क्या वह युवाओं की सेवा भावना को सम्मान देगी या उसे एक और इस्तेमाल की गई भीड़ समझकर भुला देगी?
अगर सरकार ने समय रहते जवाब नहीं दिया, तो यह आंदोलन राज्यव्यापी असंतोष और युवाओं के विद्रोह का रूप ले सकता है।
क्योंकि युवाओं ने कहां हैं ये सिर्फ 2000-5000 रुपये की बात नहीं है,हम युवा आत्म-सम्मान और न्याय की मांग कर रहे हैं।