उत्तरकाशी के धराली और हर्षिल में आई भीषण आपदा को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। इसरो के प्रतिष्ठित संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आई.आई.आर.एस.) ने एक वर्ष पूर्व ही उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को रिपोर्ट भेजकर आगाह किया था कि इन क्षेत्रों के ऊपरी हिस्से में कृत्रिम झीलों का निर्माण हो चुका है, जो किसी भी समय बड़ी आपदा का कारण बन सकते हैं।
लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि आपदा प्रबंधन विभाग ने इस चेतावनी को नकारते हुए अधिकृत बयान जारी किया कि उन्हें ऐसी कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई।
समय रहते कार्रवाई होती तो बच सकती थीं कई जानें
आई.आई.आर.एस. की चेतावनी के बाद भी यदि आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने त्वरित स्थलीय निरीक्षण, भूगर्भीय सर्वेक्षण और जी.आई.एस. मैपिंग करवाई होती, तो जान-माल के नुकसान को काफी हद तक रोका जा सकता था। विशेषज्ञों का कहना है कि पुराने और नए सैटेलाइट डेटा की तुलना कर संभावित खतरे की पहचान करना संभव था, लेकिन विभाग के पास पिछले 5 वर्षों से जी.आई.एस. अपडेटेड डेटा ही उपलब्ध नहीं है।
हाईकोर्ट के आदेश की भी अनदेखी
वर्ष 2019 में अजय गौतम ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें गंगोत्री ग्लेशियर और आसपास के क्षेत्रों में कृत्रिम झीलों के खतरे की ओर ध्यान दिलाया गया था। हाईकोर्ट ने आपदा प्रबंधन विभाग को नियमित सर्वेक्षण और रिपोर्टिंग के निर्देश दिए थे, जिनका पालन नहीं किया गया।
भ्रष्टाचार और लापरवाही के आरोप
वरिष्ठ भाजपा नेता रविन्द्र जुगरान ने आरोप लगाया कि आपदा प्रबंधन विभाग अब “घोटाला प्रबंधन विभाग” बन चुका है। उन्होंने कहा कि करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण विभाग आपदा प्रबंधन के बजाय अन्य गतिविधियों में लिप्त है।
जुगरान ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि आई.आई.आर.एस. की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने वाले सभी जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान कर उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई और मुकदमा दर्ज किया जाए। साथ ही, विभाग में हुए घोटालों की विस्तृत रिपोर्ट भी मुख्यमंत्री को सौंपने की बात कही है।