प्राग फार्म भूमि विवाद का इतिहास
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1933 में ब्रिटिश सरकार ने किच्छा तहसील के 12 गांवों की 5193 एकड़ भूमि प्राग नारायण अग्रवाल को 99 वर्षों की लीज पर दी थी।
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1938 में प्राग नारायण अग्रवाल की मृत्यु के बाद भूमि उनके वारिसों केएन अग्रवाल और शिव नारायण अग्रवाल के नाम दर्ज हो गई।
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स्वतंत्रता के बाद महाराजपुर और श्रीपुर की भूमि विस्थापितों को आवंटित कर दी गई।
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1966 में लीज गवर्नमेंट एस्टेट ठेकेदारी अबोलिशन एक्ट के तहत यह लीज निरस्त कर दी गई।
प्रशासनिक कार्रवाई और कब्जा
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विवादित भूमि में से 4034.03 एकड़ भूमि शेष रह गई थी।
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2014 में प्रशासन ने 1972.75 एकड़ भूमि पर कब्जा कर लिया था।
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शेष 1914 एकड़ भूमि को 3 नवंबर 2022 को जिलाधिकारी न्यायालय के आदेश पर राज्य सरकार के नाम दर्ज किया गया था।
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हालांकि, उच्च न्यायालय में दायर विशेष अपील के चलते कब्जा नहीं लिया जा सका था।
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13 अगस्त 2025 को उच्च न्यायालय ने अपील को निरस्त कर दिया।
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इसके बाद शनिवार को एडीएम कौस्तुभ मिश्रा की अगुवाई में प्रशासन ने भूमि पर कब्जा कर लिया।
पुलिस बल की तैनाती
कार्रवाई के दौरान किसी तरह के विरोध की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने भारी पुलिस फोर्स तैनात की। हालांकि, पूरी प्रक्रिया शांति से संपन्न हुई और प्रशासन को किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा।