न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए देहरादून निवासी सार्थक वर्मा की याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि इस तरह की स्थिति में महिला की सहमति को “भ्रमित सहमति” माना जाएगा, जो कानून की दृष्टि में वास्तविक सहमति नहीं है।
मामला कैसे शुरू हुआ
पीड़िता ने सितंबर 2021 में देहरादून में एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप था कि अभियुक्त सार्थक वर्मा ने अपनी पहली शादी छिपाकर 24 अगस्त 2020 को हिंदू रीति-रिवाज से उससे विवाह किया। शादी के बाद महिला को दहेज मांग और मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। बाद में यह खुलासा हुआ कि अभियुक्त पहले से ही विवाहित है। इसके बाद पीड़िता ने गंभीर आपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया।
दर्ज हुईं कई धाराएं
शुरुआत में मामले में आईपीसी की धाराएं 498ए, 494, 377, 323, 504, 506 और दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धाराएं लगाई गईं। बाद की जांच में कुछ धाराएं हटाई गईं, लेकिन नए जांच अधिकारी ने और भी गंभीर धाराएं जैसे 375(4), 376, 493, 495 और 496 शामिल कर दीं।
अभियुक्त का पक्ष
सार्थक वर्मा की ओर से अदालत में दलील दी गई कि जांच निष्पक्ष नहीं हुई और पुलिस ने बिना पर्याप्त साक्ष्य के गंभीर धाराएं जोड़ दीं। उनका यह भी कहना था कि पीड़िता पहले से ही उसकी शादी के बारे में जानती थी और इस तरह की शिकायत पहले भी कर चुकी है।
पीड़िता और राज्य का तर्क
पीड़िता व राज्य पक्ष की ओर से कहा गया कि जांच में यह तथ्य स्पष्ट हुआ कि अभियुक्त शादीशुदा था और उसने यह सच्चाई छुपाकर विवाह और शारीरिक संबंध बनाए। पीड़िता ने अदालत में कहा कि यदि उसे पहले से यह जानकारी होती, तो वह कभी विवाह या संबंध के लिए तैयार नहीं होती।
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
हाईकोर्ट ने साफ कहा कि यदि कोई महिला यह मानकर संबंध बनाती है कि वह आरोपी की वैध पत्नी है, लेकिन वास्तव में आरोपी पहले से विवाहित हो, तो इसे “भ्रमित सहमति” (Misconception of Fact) कहा जाएगा। भारतीय दंड संहिता की धारा 375(4) के अनुसार यह दुष्कर्म (Rape) है।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट और अन्य उच्च न्यायालयों के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए माना कि इस मामले में प्रथम दृष्टया गंभीर अपराध बनते हैं। निचली अदालत का आदेश सही माना गया और सार्थक वर्मा की याचिका को खारिज कर दिया गया। साथ ही, दी गई अंतरिम राहत भी समाप्त कर दी गई।
क्यों है यह फैसला अहम?
यह आदेश उन मामलों में नजीर बनेगा, जहां शादी या रिश्तों में धोखे से सहमति ली जाती है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि सहमति तभी मान्य है जब वह पूरी जानकारी और सत्य पर आधारित हो।