प्रमोशन टालने से बढ़ा आक्रोश
सूत्रों के अनुसार, फरवरी 2025 में घोषित रिक्तियों के बाद भी एसपी सेमवाल को अपर निदेशक पद पर पदोन्नति नहीं दी गई। अर्हता पूरी करने के बावजूद लगातार 8 माह से उन्हें टहलाया जा रहा था। जबकि, विभाग के कई अफसर समय से पहले ही प्रभारी व्यवस्था पर उच्च पद पर आसीन कर दिए गए। इस भेदभाव ने सेमवाल को गहरी निराशा में डाल दिया।
सचिव को भेजा त्यागपत्र
मंगलवार, 23 सितंबर 2025 को एसपी सेमवाल ने शिक्षा सचिव रविनाथ रमन को अर्धशासकीय पत्र के माध्यम से त्यागपत्र भेजा। अपने पत्र में उन्होंने 27 मार्च 1999 से अब तक की सेवा यात्रा, योगदान और विभाग की योजनाओं के क्रियान्वयन में निभाई गई भूमिका का विस्तार से उल्लेख किया।
उन्होंने लिखा कि, “शैक्षिक प्रशासन में दो दशक से अधिक निष्ठा के बावजूद उचित सम्मान नहीं मिला। प्रमोशन में जानबूझकर विलंब किया गया। ऐसी स्थिति में सेवा से मुक्त करने की कृपा करें।”
ईमानदार अफसर की सेवा यात्रा
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वर्ष 2002 में राज्य के पहले नवोदय विद्यालय की स्थापना के लिए उन्हें नोडल अधिकारी बनाया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा शिलान्यास कराया गया।
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2004 में शिक्षा अधिनियमों और सेवा नियमों का नया ड्राफ्ट तैयार किया।
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प्रारंभिक शिक्षा के राजकीयकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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न्यायालयों के 300 से अधिक वादों के अध्ययन के आधार पर शिक्षकों व कार्मिक संवर्गों के सेवा नियम बनाए।
विभाग और सरकार पर सवाल
सेमवाल का इस्तीफा न केवल शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है बल्कि सरकार की छवि पर भी भारी पड़ सकता है। खासकर तब, जब विभाग में भ्रष्टाचार और फाइल दबाने की संस्कृति पहले से ही चर्चा में रही है।
भविष्य पर पड़ सकता है असर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक ईमानदार और अनुभवी अफसर का इस्तीफा शिक्षा मंत्री और विभागीय नेतृत्व के लिए चुनौती बन सकता है। यह मामला रेड टेपिज्म और प्रमोशन प्रक्रिया में पारदर्शिता पर बड़े सवाल खड़े करता है।