देहरादून। विकासनगर के चर्चित मोती हत्याकांड में अदालत ने बुधवार को बड़ा फैसला सुनाया। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश नंदन सिंह की अदालत ने आरोपी नदीम और अहसान को सभी आरोपों से बरी कर दिया। पुलिस ने इस केस में ईंट से सिर पर वार कर हत्या की कहानी गढ़ी थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर पर कोई चोट नहीं मिली। रिपोर्ट में सिर्फ गले और जांघ पर धारदार हथियार के गहरे चीरे के निशान पाए गए। यही बात पुलिस की पूरी जांच पर सवाल खड़ा कर गई।
मामले की शुरुआत ऐसे हुई
18 जनवरी 2019 को त्यूणी के झिटाड़ निवासी तारा सिंह ने बताया था कि उनका बेटा मोती सिंह, जो मकान निर्माण के सिलसिले में विकासनगर आया था, रहस्यमय तरीके से लापता हो गया। 16 जनवरी को वह दोस्त संजय चौहान के साथ बाल कटवाने निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा। इसी दौरान दो युवक नदीम और अहसान कार में उसके साथ देखे गए। बाद में तारा सिंह ने दोनों पर बेटे के अपहरण का आरोप लगाया।
20 मार्च 2019 को आसन बैराज के गेट नंबर 1 पर मोती का शव बरामद हुआ। पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर हत्या का केस दर्ज किया।
पोस्टमार्टम ने पलट दी कहानी
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पुलिस ने दावा किया कि सिर पर ईंट मारकर हत्या की गई।
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रिपोर्ट में सिर पर कोई चोट नहीं मिली।
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गले पर 10 सेमी लंबा और जांघ पर 10 सेमी का धारदार हथियार से चीरा पाया गया।
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कार और ईंट पर मिले खून का मिलान भी नहीं कराया गया।
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गवाह संजय चौहान से टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) नहीं करवाई गई।
अभियोजन पक्ष ने 15 गवाह पेश किए, जबकि बचाव पक्ष के वकील हिमांशु पुंडीर ने साक्ष्यों की कमजोरी पर सवाल उठाए। नतीजा—अदालत ने दोनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
पुलिस की जांच पर उठे गंभीर सवाल
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हत्या का कोई स्पष्ट उद्देश्य सामने नहीं आया।
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घटना के अहम गवाह की पहचान प्रक्रिया ही नहीं कराई गई।
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बरामदगी में स्वतंत्र साक्ष्य नहीं था।
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धारदार हथियार की बात छुपाकर ईंट की कहानी गढ़ी गई।
यह पूरा मामला इस बात का उदाहरण बन गया कि कमजोर जांच और मनगढ़ंत कहानी किसी भी मुकदमे को कैसे कमजोर कर सकती है।
शव की बरामदगी में भी देरी
पुलिस दो महीने तक शक्ति नहर में शव की तलाश करती रही। ड्रोन, सोनार और डीप डाइविंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया। आरोपियों को रिमांड पर भी लिया गया, लेकिन शव नहीं मिला। आखिरकार दो माह बाद आसन बैराज में शव फंसा हुआ मिला।
निष्कर्ष
चर्चित मोती हत्याकांड में पुलिस की जांच और आरोपपत्र अदालत में टिक नहीं सका। छह साल से ज्यादा जेल में बंद रहे नदीम और अहसान अब बरी हो चुके हैं। यह केस साफ संकेत देता है कि जांच में चूक किसी भी बड़े मुकदमे को कमजोर बना सकती है।











