कराहती जिंदगी
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लेखक -फैज़ान पोसवाल
वन गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखने वाला 19 साल का नौजवान युवक लियाकत अली,जिसकी कुछ ही महीनो पहले शादी हुई है,जो आज अपनी आँखों में जिंदगी की नयी शुरुआत और ढेर सारे सपनो के साथ शाम के समय अपनी भैंसों के लिए पत्तियां काटने जा रहा है,वो खुश है और मन ही मन मुस्कुरा रहा है के जल्दी ही वह किसी अजनबी इंसान के साथ चलकर नये अनुभवों के साथ अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाएगा।(वन गुर्जर समुदाय में लड़की अपनी ससुराल शादी के समय से 1 हफ्ते,1 साल या उससे भी अधिक समय बाद जाती है)।
परंतु उसे ये मालूम न था के आज वह एक नयी चुनौती का सामना करने जा रहा है। घर से करीब 7 किलोमीटर तक जंगल में जाने के बाद वह अब अपने उस स्थान पर पहुँच चुका था जहाँ उसे अपने पशुओं के लिए चारा की व्यवस्था करनी थी।आज उसने एक बड़े और लंबे बहेड़े के पेड़ को पत्तियों के लिए चुना जो काफी पुराना हो चूका था,जिसकी ज्यादातर टहनियां टेढ़ी और नीचे की ओर झुकी हुई थी।लियाकत की भैंसे भी उसके पीछे पीछे वहाँ पहुँच चुकी थी और अपने खाने का इन्तजार कर रही थी।
सर्दियों का मौसम था और शाम के 5 बजने वाले थे,लियाकत ने जल्दी से अपने जूते उतारे और उस पेड़ पर चढ़ गया,उसने पत्तियों को काटना शुरू कर दिया और उसकी भेंसे भी अब नीचे गिर रही पत्तियों को खाने लगी थीं।
अब वह करीब 40 फिट की ऊंचाई पर पहुँच चुका था और आराम से पत्तियां काट रहा था,
कुछ देर बाद लियाकत ने एक टेढ़ी टहनी की ओर कदम बढ़ाये,अभी वह उस टहनी को काटते हुए आधे हिस्से तक ही पहुंचा था के ये क्या……अचानक से वह टहनी पेड़ के तने से अलग हो गयी एक कड़ाके की आवाज के साथ लियाकत उस टहनी के साथ जमीन पर पैरों के बल आ गिरा,अच्छा हुआ के वो टहनी उसके ऊपर नहीं गिरी और वो किसी भैंस के ऊपर भी नहीं गिरा।गिरने के दौरान लियाकत ने अपनी पाठल पर पकड़ बनाये रखी।
अब वह भैंसों के झुण्ड के बीच दर्द से कराह रहा था,और उसकी भैंसे उसके चारों और घूम घूम कर उसे देख रही थी जिनके पैरों से लियाकत कुचला भी जा सकता है।पैरों के बल गिरने के कारण लियाकत को अपने पैरों और टांगो में असहनीय दर्द हो रहा था।
वह जंगल में अपने घर से बहुत दूर था जहाँ उसकी आवाज या उसकी मदद करने वाला कोई नहीं था।
रात होने वाली थी और कोहरा भी धीरे धीरे अपनी चादर बिछा रहा था।करीब 20 मिनट तक उसी स्थान पर दर्द से कराहते रहने के बाद लियाकत ने थोड़ी सी हिम्मत जुटा कर खड़े होना चाहा लेकिन उसके पैरों ने उसका साथ नहीं दिया और वह दर्द से तड़प उठा,अब उसकी चिंता और बढ़ गयी थी क्योंकि उसे जिन्दा रहने के लिए बिना चले घर तक पहुंचना था और वो भी जितना जल्दी हो सके क्योंकि रात को जंगली जानवरों का खतरा बढ़ जाने पर वह किसी भी जानवर का शिकार बन सकता था बल्कि हाथी के चिंघाड़ने की आवाज तो उसे अपने पास ही सुनाई दे रही थी।
लियाकत ने फिर से हिम्मत जुटाकर किसी तरह हाथों के सहारे घिसटते हुए अपने आप को भैंसों के पैरों से अलग किया।अब उसका सहारा सिर्फ एक पाठल थी और वह धीरे धीरे कभी हाथों,घुटनों,पेट,पीठ के सहारे घिसटता हुआ अपने घर की ओर जाने की कोशिश करने लगा।कभी वह लेट जाता तो कभी कभी वह घुटनो के बल चलता रहता,ठंडा मौसम होने के कारण दर्द बढ़ता ही जा रहा था। आज अम्मा ने बोला भी था के “लियाकत घर के पास ही पत्तियों की व्यवस्था कर लो” लेकिन वह माना नहीं था ये सोचकर वह पश्चाताप कर रहा था। उसे चलते हुए करीब 2 घंटे होने वाले थे काफी दूर तक जाने के बाद अब वह थकने लग गया था और उसका घर अभी बहुत दूर था,वह सोच रहा था के शेर आदि के आने पर वह क्या कर पायेगा आखिर ये एक पाठल कब तक उसका साथ निभाएगी,ये सोचकर अब उसने मदद के लिए आवाज लगाना शुरू कर दिया लेकिन जंगल में उसकी आवाज को सुनता कौन?😢वह लगातार मदद के लिए आवाज लगाता रहता और आगे बढ़ता रहता।इधर अँधेरा होने पर उसकी अम्मा चिंतित हो गईं थी और उन्होंने उसके भाइयों को उसकी खबर के लिए उसकी ओर भेज दिया।कुछ देर बाद उनको लियाकत के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी और वो लोग भागकर उसके पास पहुंचे,जहाँ लियाकत जमीन पर पड़ा दर्द से तड़प रहा था।जहां से उसे चारपाई पर लिटाकर घर लाया गया।
ये दर्द सिर्फ लियाकत तक ही सिमित नहीं हैं, ऐसी अनगिनत कहानियां है जिसमें वन गुर्जर समाज के बहुत से व्यक्तियों ने अपनी जानें गंवाई है,किसी सुहागिन ने अपना सुहाग,मां ने अपना जवान बेटा और बहन ने अपना भाई खोया है। जो बच गये उनमें किसी का हाथ तो किसी का पैर टूटा है और कई तो लंबे समय के लिए बिस्तर पर लेट जाते है जिससे उनका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर पड़ जाता है।
लेकिन क्या इसके लिए ये लोग स्वयं जिम्मेदार हैं? नहीं।क्यूंकि कोई भी ऐसी दर्दनाक जिंदगी नहीं जीना चाहता है जिसमे हर पल मौत से सामना हो।
इसलिए इनको विस्थापित कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की जरूरत है।
आज करीब 1 साल बाद लियाकत अपने पैरों पर चल फिर रहा है,और अपने नये साथी के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा है परंतु ना जाने कितने लियाकत रोज जंगलो में मौत से लड़ रहे हैं ये बात अलग है कि सबकी किस्मत इस लियाकत के जैसी नहीं होती की उन्हें जिंदगी फिर से एक मौका प्रदान करे।