कांग्रेस की परिवर्तन रैली की निकली किच्छा में हवा
रिपोर्ट:दिलीप अरोरा
किच्छा।कांग्रेस पार्टी खुद को प्रदेश मे परिवर्तन यात्रा के जरिये दोबारा सत्ता मे लाने की सोच रही है इसीलिए वह जनता को जागरूक करने और मिडिया मे छाने के लिए परिवर्तन रैली निकाल रही है।जो राज्य के प्रत्येक जिले मे जा रही है।
इसी कर्म मे ज़ब कांग्रेस की परिवर्तन रैली कल किच्छा पहुंची थी।
इसलिए इस रैली को सफल बनाना इन छुट भैया नेताओं के लिए टेड़ी खीर भी थी।
क्योंकि हर कोई रैली मे भीड़ तो देखना चाहता था लेकिन इनमे प्रदेश के अलाकमान के नजरो खुद को क्षेत्र का कददावर नेता भी साबित करने की होड़ साफ साफ दिख रही थी ।
कॉंग्रेसी नेताओं मे गुटबाजी तो इतनी है की इसकी जानकारी प्रदेश के नेताओं को भी है क्योंकि तभी रैली मे अपने सम्बोधन मे हरीश रावत और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने भी बार बार माइक से इस बात को बोला की जिस तरह मंच मे आप सब एकजुटता के साथ बैठे है ऐसे ही आने वाले चुनाव तक भी एक जुट रहना है।
वजह साफ थी की पिछली बार हरीश रावत इसी गुट बाजी के चलते चुनाव हार गए थे। और कुछ दिन पूर्व एक सभा के दौरान तिलक राज बेहड़ और हरीश पनेरू के झगड़े की चर्चा ने भी क्षेत्र मे खूब सुर्खिया बटोरी थी। इसीलिए कांग्रेस के बड़े नेताओं ने एकजुटता की बात को दोहराया।
फिलहाल किच्छा पहुंची परिवर्तन रैली मे कमियाँ भी देखने को मिली और राजनीतिक फायदे की बात कहे तो इसमें भी कांग्रेस को कोई ज्यादा फायदा मिलने वाला नहीं है।
यह परिवर्तन रैली का शो पूरी तरह से फ्लॉप साबित ही हुआ है।
आप सब सोच रहे होंगे की ऐसा हम क्यों कह रहे है तो इसकी वजह बहुत सारी है।
जबरदस्ती लाये गए थे रैली मे लोग
रैली को सफल बनाने के भीड़ जरूरी थी इसके लिए बड़ी जिम्मेदारी कांग्रेस नेताओं की ही थी।
क्योंकि क्षेत्र मे कांग्रेस की गुटबाजी और दूसरा रैली मे प्रदेश के बड़े नेताओं का आना और इनके सामने खुद को मजबूत दावेदार के रूप मे साबित करना भी एक बड़ा चैलेन्ज था।
ऐसे मे नेताओं ने लोगो को जबरदस्ती रैली के मंच तक पहुंचाया।
और कुछ लोगो को खूब बिनती कर कर के रैली पर चलने के लिए मनाया ताकि प्रदेश के शीर्ष के नेताओं के आगे टिकट लेने के लिए अपने नंबर बना सके।
कोई बसों से लोगो को लाया तो कोई दूसरे वाहन से तो कोई नेता अपनी पैदल रैली की शक्ल मे लोगो लाता दिखा।
और कोई नेता तो नगर पालिका के सभागार मे लोगो को इकट्ठा करता और उनकी गिनती करता दिखा। ताकि समय आने पर बता सके की मै कितने लोगो को लाया।
लेकिन इसकी वास्तविक सचाई वहा आयी जनता ने ही अपने आप बताई।
ज़ब हमारे संवाददाता ने वहा आये एक बुजुर्ग से पूछा की आप यहां क्यों आये है तो उसको पता नहीं था की कौन नेता आया है और किसलिए उसको लाया गया है।
उस बुजुर्ग ने हमें बताया की बार बार नेता उसके घर आ रहे थे बोल रहे थे की चलो चलो तभी मुझे मजबूरी मे आना पढ़ा।
ऐसे ही एक छोटे बच्चे से भी बात हुई उसने बताया की उसको एक भैया लेकर आये है।
उससे ज़ब पूछा की यहां क्या हो रहा है उसे पता नहीं था।
ऐसे ही वहा पहुंची कुछ महिलाये भी जबरदस्ती ही लायी गयी थी उनमे एक बुजुर्ग महिला से ज़ब रैली मे आने का कारण पूछा तो न उनको नेता का नाम पता था न रैली का उद्देश्य। सिर्फ यही पता था की गांव के नेता लोग आये और बोले चलो चलो चलना है।
कुल मिलाकर अपने आकाओ को खुश करने के लिए कॉंग्रेसी नेताओं ने जबरदस्ती भीड़ जुटाई।
जनता को रैली तक लाने मे भी दिखी गुटबाजी
क्षेत्रीय नेताओं द्वारा रैली तक लोगो को लाने मे भी गुटबाजी साफ साफ दिखी।
हर कोई अपने द्वारा लाये गए लोगो को अलग से दिखाना चाहता था।
इसीलिए किसी ने अपनी भीड़ को मंच तक पहले ही पहुंचा दिया।
तो कोई नेता नगरपालिका के सभागार मे अपने लोगो की गिनती और लिष्ट बनाता दिखा।
तो कोई नेता बस स्टैंड पर अपने लोगो को लेकर खड़ा दिखा।
जिसका जिगता जागता उदहारण पेश किया कॉंग्रेसी नेता नजाकत खां ने।
जैसे ही रैली किच्छा रोडवेज पहुंची तभी नजाकत भी अपने समर्थको के साथ हरीश रावत के सामने हाथ हिलाते और जोड़कर अभिवादन करते दिखे।
अगर रैली को सही मे सफल करना था तो मंच तक सभी नेता मिल जुल कर जनता को पंहुचाते रहते लेकिन ज्यादातर नेता खुद को अलग दिखाना चाहते थे।
बच्चों और बुजुर्गो की भी नहीं की परवाह
नेताओं को अपने आकाओ को खुश करना था इसके लिए रैली के मंच पर भीड़ चाहिए थी और खुद के साथ जनता का कितना समर्थन है यह भी साबित करना था।
इसके लिए उन्होने खुद को स्वार्थी बनाते हुए कोरोना महामारी को भी नजर अंदाज कर दिया और उनकी जान की भी परवहा नहीं की और भीड़ मे लोगो की संख्या ज्यादा दिखे इसके लिए गाँवो से 10साल से भी कम उम्र के बच्चों और 55 बर्ष से ज्यादा उम्र के बुजुर्गो को भी रैली मे बिना मास्क के लाने से नहीं चूके।
इस मे कही न कही प्रशासन भी फेल दिखा। उसको भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए था की भीड़ मे इन दो उम्र के लोग को रोकना चाहिए था।
यही नहीं रैली मे एक दो को छोड़कर किसी ने भी मास्क नहीं लगाया था। बल्कि मंच पर बैठे नेता भी बिना मास्क ही दिखे नेताओं को जनता फॉलो करती है इनका अपना एक जनाधार होता है। इनको भी चाहिए था की यह लोग मंच पर मास्क लगाकर बैठते ताकि इनके माध्यम से समाजिक दृष्टिकोण से समाज को कोरोना महामारी से बचाव के लिए एक अच्छा सन्देश जाता।
क्योंकि अभी भी हमारे स्वाथ्य विभाग ने कोरोना की तीसरी लहर न आने की कोई बात नहीं की है स्वाथ्य विभाग के हिसाब से भी तीसरी लहर जरूर दस्तक देगी अगर अनदेखी की गयी तो।
इस लहजे से समाजिक नजर से भी रैली फेल ही दिखी।