देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने डेपुटेशन (प्रतिनियुक्ति) को लेकर बड़ा फैसला लिया है। अब कोई भी सरकारी कर्मचारी अधिकतम पांच साल तक ही डेपुटेशन पर रह सकेगा। इसके बाद उसे अपने मूल विभाग में वापस लौटना अनिवार्य होगा। वर्षों से दूसरे विभागों में जमे अधिकारियों और कर्मचारियों को अब झटका लग सकता है।
पहली बार राज्य में डेपुटेशन के लिए स्पष्ट नीति तैयार की गई है। अब तक उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश के 1999 के शासनादेश के आधार पर डेपुटेशन की फाइलें चलाई जा रही थीं। इस वजह से कई कार्मिक अपने मूल विभाग को छोड़, मनपसंद विभागों में लंबे समय तक डटे हुए थे।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में इस मामले में सख्ती दिखाते हुए निर्देश जारी किए थे कि अब कोई भी कर्मचारी लंबे समय तक डेपुटेशन पर नहीं रहेगा। इसके बाद वित्त विभाग ने नया शासनादेश जारी कर दिया है।
नए नियम क्या कहते हैं?
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डेपुटेशन की पात्रता: कर्मचारी केवल तब ही डेपुटेशन पर जा सकेगा जब वह अपने मूल पद पर कम से कम पांच साल की सेवा पूरी कर चुका हो।
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समय सीमा: डेपुटेशन की अधिकतम अवधि तीन साल तय की गई है। इसके बाद दो साल का सेवा विस्तार केवल वित्त विभाग की स्वीकृति के बाद मिलेगा।
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विस्तार के लिए शर्तें: सेवा विस्तार के लिए एक माह पहले प्रस्ताव भेजना होगा जिसमें मूल विभाग की अनापत्ति, डेपुटेशन विभाग की आवश्यकता, और पूरी जानकारी शामिल होगी।
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कूलिंग पीरियड: डेपुटेशन की अधिकतम 5 साल की अवधि पूरी होने के बाद कर्मचारी को पांच साल तक अपने मूल विभाग में ही कार्य करना होगा।
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सीमित अवसर: किसी भी कर्मचारी को पूरे सेवा काल में अधिकतम दो बार ही डेपुटेशन पर भेजा जा सकेगा।
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रिटायरमेंट के नजदीक नहीं मिलेगा मौका: यदि किसी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति में पांच साल से कम समय बचा है, तो उसे डेपुटेशन की अनुमति नहीं दी जाएगी।
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विज्ञप्ति जरूरी: अगर किसी विभाग को डेपुटेशन पर कर्मचारी चाहिए, तो उसे उस पद के लिए विज्ञप्ति निकालनी होगी ताकि सभी को समान अवसर मिल सके।
अफसरों में मचा हड़कंप
इस आदेश के बाद उन अधिकारियों और कर्मचारियों में हलचल मच गई है जो कई वर्षों से डेपुटेशन के जरिए पसंदीदा विभागों में जमे हुए थे। अब उन्हें या तो मूल विभाग लौटना होगा या तय नियमों के अनुसार ही डेपुटेशन पर रहना होगा।