देहरादून: देहरादून में शराब की दुकानों के स्थानांतरण को लेकर जारी विवाद ने अब प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है। विवाद में नया मोड़ तब आया जब जिला आबकारी अधिकारी के.पी. सिंह पर गंभीर आरोप लगने के बाद उनके निलंबन की संस्तुति की गई। उन पर उच्च अधिकारियों के आदेशों की अनदेखी, अदालती कार्रवाई को प्रभावित करने, और याचिकाकर्ताओं से मिलीभगत के आरोप लगे हैं।
शराब दुकानों के स्थानांतरण का विवाद कैसे शुरू हुआ?
यह पूरा मामला 27 मार्च 2025 को उस समय शुरू हुआ जब जिला स्तरीय सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में शहर के प्रमुख चौराहों पर स्थित शराब दुकानों को ट्रैफिक जाम और सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। बैठक में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व पुलिस अधीक्षक (यातायात) की संस्तुति के आधार पर इन दुकानों को दूसरी जगह स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया, जिसके बाद जिलाधिकारी ने आदेश जारी किया।
याचिका, अदालत और आबकारी अधिकारी का विवादास्पद रुख
दुकानदारों ने इन आदेशों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में रिट याचिकाएं दायर कीं। कोर्ट ने अपील और पुनरीक्षण के अवसर देने के निर्देश दिए, जिसके बाद प्रमुख सचिव आबकारी ने 31 जुलाई तक स्थानांतरण की अंतिम तिथि निर्धारित की। लेकिन इस बीच, जिला आबकारी अधिकारी के.पी. सिंह द्वारा न्यायालय को भेजे गए तथ्यों ने विवाद को और गहरा कर दिया।
उनके बयान में कहा गया कि इन दुकानों से ना तो सड़क दुर्घटना हो रही है, ना ही किसी तरह की जन आपत्ति है, और ना ही कोई नियमों का उल्लंघन हो रहा है। यह तथ्य शासन, जिला समिति और उच्च अधिकारियों की राय के एकदम उलट पाए गए।
अधिवक्ता की रिपोर्ट में गंभीर आरोप
राज्य सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता द्वारा उच्च न्यायालय को भेजे गए पत्र में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि आबकारी अधिकारी केपी सिंह ने शासन के निर्णयों की अवहेलना की है और याचिकाकर्ताओं के साथ मिलकर कार्य किया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उनके रुख के चलते शासन के आदेशों का न्यायालय में बचाव करना बेहद कठिन हो गया है।
निलंबन की सिफारिश और आगे की कार्रवाई
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रमुख सचिव आबकारी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने के.पी. सिंह को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने और उनके खिलाफ उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की है। माना जा रहा है कि सरकार इस पूरे मामले को अत्यंत गंभीरता से ले रही है और आबकारी विभाग में आगामी दिनों में और भी प्रशासनिक कार्रवाई हो सकती है।
31 जुलाई की सुनवाई पर टिकी निगाहें
अब सभी की निगाहें 31 जुलाई को होने वाली अदालत की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां राज्य सरकार को अपने तथ्यों और रुख का मजबूती से पक्ष रखना होगा। यह मामला अब केवल शराब दुकानों के स्थानांतरण का नहीं रहा, बल्कि शासन-प्रशासन में जवाबदेही और अनुशासन का बड़ा उदाहरण बन चुका है।