सबसे पवित्र स्थल ,देव भूमी उत्तराखंड सुन ने में ही कितना आनंदमय प्रतीत होता है। उत्तराखंड से होना ही भाईचारा, विश्वास और ईमानदारी का प्रतीक माना जाता है ऐसी छवि है हमारी पूरे विश्व में।
मगर कल्पना से दूर यंहा आज ये कौनसी दिशा में उत्तराखंड जा रहा है यंहा किसी ने कल्पना भी नही की थी कि 10 साल की नाबालिक बच्ची आराधना का बलात्कार होगा ,उसके टुकड़े टुकड़े करके उसकी लाश पालीथिन में मिलेगी, या उत्तरकाशी में स्कूल से आती हुई लड़की को कोई दिन दहाड़े उठा कर ले जा लेगा और उसकी लाश हमे पास के ही जंगलो में मिलेगी। ऐसी तमाम कई और घटनाओ की लिस्ट है।
ये कोनसा उत्तराखंड है, ऐसे रूह कंपा देनी वाली घटनाओं का शायद उत्तराखंड में किसी ने कल्पना भी नही करी होगी।
मगर अब आये दिन हमे समाचार पत्रों में ये सब देखने को मिल जाता है मानो अबतो ये हमारे लिए रोजमर्रा की खबर हो गई हो।
पुराना उत्तराखण्ड तो शायद कबका मर चुका है क्योंकि ऐसी घटनाओं की कभी इस उत्तराखंड ने कल्पना भी नही की थी, उसकी रूह कांप जाती ये सब सुनके की देवताओ के निवास स्थान , जिसे पूरा विश्व पूजता है उसमें ऐसी घटनायें अब लोगो को आम सी लगने लगेगी।
हम उस सभ्यता से आते है जंहा अतिथि देवो भव: की परंपरा है।
पर कोन है ये अतिथि । परंपरा तो हमने बनाली मगर इसमे आज तक गोर नही किया कि ये कोनसी परंपरा की ओर हम अग्रसर है।
माफ कीजियेगा मगर उत्तराखंड में होने वाले सारी घटनाओ का जिम्मेदार आज ये अतिथि है। अतिथि से अभिप्राय जो लोग मूल रूप से उत्तराखंड से नही है।
क्योंकि कोई भी रिपोर्ट उठा के देख लीजिए सारी क्राइम लिस्ट में इन अतिथियों की भरमार है। 90% क्राइम के पीछे आज बाहरी प्रवासियों का हाथ है। जो अब तथाकथित उत्तराखंडी बने हुवे है।
अब सवाल यह उठता है कि कोन जिम्मेदार है इन सब हो रही घटनाओं का।
ये अतिथि जो कभी भी राक्षस रूप धारण कर लेते है। या हम जिम्मेदार है जो देवता और राक्षसों में फर्क तक न जान सके और कब ये घटनाएं हमारे लिए आम सी होने लगी हमे पता ही नही चला।
अब इसे फिरसे वो पुराना उत्तराखंड कैसे बनाया जाए में ये तो नही जानता।
मगर में इतना जरूर जनता हु की जिस भूमि में 5-10 साल की बच्चीयों के बलात्कार और निर्मम हत्या लोगों को आम लगने लगे और ऐसी घटनाएं जब उनके निजी जीवन मे समाचर पत्रो का हिस्सा बनने लगे ,वह भूमि कभी देव-भूमि हो ही नही सकती।
ऐसे नपुंसक लोगो की भूमि में देवताओ का क्या काम।
अब ये ही उत्तराखण्ड का कटु सत्य रह गया है।
धन्यवाद।
ये मेरा निजी लेख है।
विजय रावत।