हल्द्वानी, 10 जून 2025 — राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी एवं डॉ० सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय के उपनल कर्मचारियों का असंतोष आज चरम पर पहुँच चुका है। लगातार दूसरे दिन भी सभी उपनल कर्मचारी कार्य बहिष्कार पर डटे रहे। उनका कहना है कि अगर जल्द ही उनकी मांगों को लेकर शासन-प्रशासन ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया, तो वे अनिश्चितकालीन धरने पर उतरने को मजबूर हो जाएंगे।
क्या हैं कर्मचारियों की प्रमुख मांगें?
समान कार्य के लिए समान वेतन: मा० उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है कि उपनल कर्मचारियों को 6 माह के भीतर समान कार्य का समान वेतन दिया जाए।

नियमितीकरण: 1 वर्ष के भीतर कर्मचारियों को नियमित करने का निर्देश भी न्यायालय द्वारा दिया गया था, जिसकी स्पष्ट अनदेखी की जा रही है।
वेतन भुगतान: पिछले चार महीनों से वेतन लंबित है, जिससे कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति भयावह हो चुकी है।
वास्तविकता: भूखे पेट सेवा नहीं होती
इन कर्मचारियों में से अधिकांश लोग दूर-दराज़ क्षेत्रों से आकर किराये के कमरों में रह रहे हैं। अब उन्हें मकान मालिकों द्वारा कमरा खाली करने की धमकी दी जा रही है। बच्चों की स्कूल फीस न दे पाने के कारण विद्यालयों से लगातार चेतावनी भरे फोन आ रहे हैं।
“हमने कोरोना काल में जान की परवाह किए बिना सेवा की, आज सरकार हमें बेसहारा छोड़ चुकी है,” एक कर्मचारी की आंखों में आँसू लिए बयान।
व्यवस्था ध्वस्त, हॉस्पिटल बंद होने के कगार पर
चूंकि उपनल कर्मचारी अस्पताल की रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं चाहे वो लैब तकनीशियन हों, वार्ड ब्वॉय, सुरक्षा कर्मी या सफाईकर्मी उनके बहिष्कार से चिकित्सालय की मूलभूत सेवाएं बुरी तरह चरमरा गई हैं। मरीजों की देखभाल बाधित हो रही है, और जल्द ही स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
फ्रंटलाइन हीरो बने ‘शोषित’ कर्मचारी
कोविड-19 महामारी के दौरान जान की बाज़ी लगाकर सेवा देने वाले जिन कर्मचारियों के नाम सम्मान समारोहों में गूंजे थे, आज वही नीरज हैड़िया, पूरन भट्ट, भानु कैड़ा, दीपा शर्मा, प्रभा गोस्वामी, रेखा सनवाल जैसे कई योद्धा वेतन और अधिकारों के लिए धरना देने को मजबूर हैं।
सरकार से सीधा संदेश: समय रहते चेत जाएं!
अगर सरकार ने जल्द ही कर्मचारियों की मांगों को नहीं माना, तो न सिर्फ चिकित्सा सेवाएं पूर्णतः ठप हो सकती हैं, बल्कि जनाक्रोश भी भड़क सकता है। इस स्थिति की पूरी जिम्मेदारी विभागीय मंत्री, चिकित्सा शिक्षा विभाग और मुख्यमंत्री पर होगी।
यह सिर्फ वेतन या नियमितीकरण की मांग नहीं है, यह लड़ाई है इज़्ज़त और इंसानियत की। STF हॉस्पिटल के कर्मचारी सिर्फ कर्मचारी नहीं, वे उन अनदेखे नायकों में से हैं जिन्होंने महामारी के अंधकार में उम्मीद का दीपक जलाया था। अब जब वे न्याय मांग रहे हैं, तो क्या शासन की आंख खुलेगी?