क्या है मामला?
संजीव चतुर्वेदी भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं, जिन्हें एक “व्हिसलब्लोअर अधिकारी” के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) में मुख्य सतर्कता अधिकारी (CVO) रहते हुए कई भ्रष्टाचार मामलों का खुलासा किया था। इसके बाद से वे लंबे समय से न्यायिक और प्रशासनिक मंचों पर अपनी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
17 अक्टूबर 2024 को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) ने उनके खिलाफ स्वतः संज्ञान लेते हुए (Suo Moto) अवमानना कार्यवाही शुरू की थी। इस पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 7 अक्टूबर 2025 तक रोक लगा दी थी।
लेकिन इसके बावजूद CAT ने 12 सितंबर 2025 को एक वरिष्ठ अधिवक्ता को न्यायमित्र (Amicus Curiae) नियुक्त करते हुए आगे की कार्यवाही जारी रखी। इसी के खिलाफ संजीव चतुर्वेदी ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी।
अब तक 16 जजों ने किया Recuse
इस मामले की विशेषता यह है कि अब तक 16 जज खुद को इससे अलग कर चुके हैं। इनमें शामिल हैं:
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न्यायमूर्ति आलोक वर्मा
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न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी
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न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल
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न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी
और इसके अलावा 12 अन्य न्यायाधीश भी चतुर्वेदी से जुड़े मामलों की सुनवाई से Recuse कर चुके हैं।
सिर्फ हाईकोर्ट ही नहीं, नैनीताल स्थित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने भी चतुर्वेदी से जुड़े एक आपराधिक मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। वहीं CAT के जज हरविंदर कौर ओबेरॉय और बी. आनंद की खंडपीठ ने भी इस केस से Recuse कर लिया।
अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को
मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की दो सदस्यीय नई पीठ इस अवमानना याचिका पर 30 अक्टूबर को सुनवाई करेगी। यह पीठ CAT और उसकी रजिस्ट्री के सदस्यों के खिलाफ दायर याचिका पर विचार करेगी।
क्यों है यह केस खास?
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भारतीय न्यायिक इतिहास में पहली बार किसी केस में इतनी बड़ी संख्या में जजों ने Recuse किया है।
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यह मामला न केवल न्यायपालिका बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता से भी जुड़ा हुआ माना जा रहा है।
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संजीव चतुर्वेदी देश के गिने-चुने उन अधिकारियों में हैं जिन्होंने सिस्टम में भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार आवाज उठाई है।
यह सुनवाई देशभर के कानूनी हलकों की निगाह में है, क्योंकि इसका असर भविष्य में व्हिसलब्लोअर्स और प्रशासनिक पारदर्शिता पर पड़ सकता है।












