विकासनगर। नवरात्र में लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना से प्रभावित ग्राम लोहारी में जेसीबी के गरजने पर स्थानीय निवासियों ने प्रशासन की कार्रवाई का विरोध किया। लोगों का कहना है कि वे स्वंय ही अपने घरों को तोड़ रहे थे। लेकिन प्रशासन ने बिना समय दिए जेसीबी लगाकर मकानों को तोड़ना शुरू कर दिया। इस मुद्दे पर ग्रामीणों की मौके पर मौजूद अधिकारियों से तीखी झड़प भी हुई।
यमुना नदी पर बन रही लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना अंतर्गत ग्राम लोहारी के 90 परिवारों को विस्थापन का पर्याप्त समय दिए बगैर पुलिस-प्रशासन द्वारा गांव में जेसीबी लगा कर मकानों के ध्वस्तीकरण किये जाने की सूचना मिलने पर कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह ने सम्बंधित अधिकारियों से वार्ता कर तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था करने तथा विस्थापन के लिये कुछ और समय दिये जाने को कहा।उन्होंने कहा कि नवरात्र के दौरान ग्रामवासियों द्वारा अपने स्तर से विस्थापन की व्यवस्था की जा रही है परन्तु प्रदेश की तानाशाही सत्ता के आदेश से शासन व प्रशासन बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था किये जबरन ग्रामीणों के घरों को उजाड़ने में लगा हुआ है।
उन्होंने कहा कि इस अलोकतांत्रिक आचरण की कठोर निंदा करते हुए हर कदम पर ग्राम लोहारीवासियों के साथ खड़े हैं।गौरतलब है कि देहरादून जिला प्रशासन ने बीती 6 अप्रैल को जल विद्युत परियोजना से प्रभावित लोहारी गांव में रहने वाले 90 परिवारों को 48 घंटे में गांव खाली करने के नोटिस थमाया था।
व्यासी परियोजना की जद में 6 गांव के 334 परिवार का विस्थापन होना है। इनमें से एक जौनसार-भाबर का गांव लोहारी भी है। 90 परिवार वाला यह गांव झील में समा जाएगा।लखवाड़-व्यासी परियोजना- कई साल से रुकी योजना का पीएम मोदी ने किया था 5 दिसंबर को लोकार्पण
बीते 5 दिसम्बर 2021 को देहरादून में प्रधानमंत्री मोदी ने 120 मेगावाट क्षमता की व्यासी जल विद्युत परियोजना का लोकार्पण किया था। इस परियोजना से हर साल प्रतिवर्ष करीब 353 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होगा। दून जिले के पछवादून में छिबरौ, खोदरी, ढालीपुर, ढकरानी और कुल्हाल जल विद्युत उत्पादन परियोजनाएं काम कर रही है।
व्यासी परियोजना देहरादून जिले के हथियारी जुड्डो में यमुना नदी पर स्थित रन आफ रिवर जलविद्युत परियोजना है। 2014 में परियोजना का निर्माण कार्य शुरू किया गया, जिसकी इसी माह कमिशिनिंग की जा रही है। इस परियोजना की लागत 1777.30 करोड़ है।
लखवाड़-व्यासी परियोजना के लिए वर्ष 1972 में सरकार और ग्रामीणों के बीच ज़मीन अधिग्रहण का समझौता हुआ था। 1977-1989 के बीच गांव की 8,495 हेक्टेअर भूमि अधिग्रहित की जा चुकी है। जबकि लखवाड़ परियोजना के लिए करीब 9 हेक्टेअर ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना बाकी है।