बड़ी खबर: विश्व पर्यावरण दिवस प्रकृति को समझना है तो पहले रिश्ता बना के देखोः सेवा सोसाइटी
- जो पर्यावरण से दूर गया, वो बीमारी के करीब गया: डाॅ0 सुजाता संजय
- वृक्ष लगाओ धरती बचााओः डाॅ0 सुजाता
देहरादून: विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सोसाइटी फार हेल्थ, ऐजूकेशन एंड वोमेन इम्पाॅवरमेंट (सेवा ) व संजय आर्थोपीड़िक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेन्टर ने चैरा गाॅव, देहरादून में वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में डाॅ0 सुजाता संजय, डाॅ0 प्रतीक एवं उनकी टीम ने वृक्षारोपण किया । सेवा सोसाइटी ने विश्व पर्यावरण दिवस पौधा रोपण लगाने के अभियान की शुरूआत की। सेवा सोसाइटी द्वारा इस पहल का आयोजन पर्यावरण संरक्षण हेतु प्लास्टिक से बने सामान एवं बैग का बहिष्कार करने के लिए समाज को जागरूक करना है।इस साल के लिए थीम बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन किया गया है, जो कि प्लास्टिक कचरे के निपटारे के समाधान खोजने पर जोर देता है।
डाॅ0 सुजाता संजय ने कहा प्लास्टिक प्रदूषण की वजह से आप कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। जैसे कि -सिलिकोसिस ,क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज जिनमें दिल की बीमारियां आती हैं, फेफड़ों का कैंसर , प्लास्टिक उत्पादन श्रमिकों को ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) , लिम्फोमा, ब्रेन कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और प्रजनन क्षमता में कमी का खतरा बढ़ जाता है।
प्रकृति को जानना है तो नजदीक जाना होगा। यानी बिना प्रकृति और पर्यावरण को समझे हम न तो उसे संरक्षित का सकते है और न ही इसके लिए कोई कोशिश कर सकते हैं। हम लोग तो पर्यावरण के बीच में ही पैदा हुए है। अगर हम संतुलन बनाने की कोशिश नहीं करोंगे तो संकट का नया दौर पैदा कर लेंगे। प्राकृतिक जंगल नस्ट हो रहे है लेकिन कंक्रीट के जंगल दिख रहे है। जो चीजें हमारे लिए जरूरी नहीं है लेकिन जीवन का हिस्सा बन गई है। आज वृक्षारोपण करना जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी उसका संरक्षण करना है। सीवर का पानी और उघोग का पानी नदियों में डाला जा रहा है। जिन नदियों का पानी मीठा था वो जहरीला हो गया है। अब बिना सहभागिता कुछ नहीं हो पाएगा। प्रकृति ने हमें दिया लेकिन हम उसको सहेज नहीं पाए। आज का दिन हम सबको प्रतिज्ञा लेनी है कि हम लोग ज्यादा से ज्यादा पेड़ रोपित करें।
डाॅ0 सुजाता संजय ने कहा कि, मौसम का बिगड़ता मिजाज मानव जाति, जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों के लिए तो बहुत खतरनाक है ही, साथ ही पर्यावरण संतुलन के लिए भी गंभीर खतरा है। मौसम एवं पर्यावरण विकराल रूप धारण करती इस समस्या के लिए औघोगिकीकरण बढ़ती आबादी, घटते वनक्षेत्र, वाहनों के बढ़ते कारवां तथा तेजी से बदलती जीवन शैली को खासतौर से जिम्मेदार मानते हैं। पिछले कुछ वर्षो से वर्षा की मात्रा में कहीं अत्यधिक कमी तो कहीं जरूरत से बहुत अधिक वर्षा जिससे कहीं बाढ़ तो कहीं सूख पड़ रहा है, समुद्र का बढ़ता जलस्तर, मौसम के मिजाज में लगातार परिवर्तन, सुनामी और भूकंप ने संपूर्ण विश्व में तबाही मचा रखी है, पृथ्वी का तापमान बढ़ते जाना जैसे भयावह लक्षण लगातार नजर आ रहे हैं।
सेवा सोसाइटी के सचिव डाॅ0 प्रतीक ने कहा कि, हमारी सोसाइटी हरित वातावरण एवं पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझती है। लोगों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूक बनाने के प्रयास में हमने इस पहल का आयोजन किया है। डाॅ0 प्रतीक संजय ने कहा कि, पृथ्वी तथा इसके आसपास के वायुमंडल का तापमान सूर्य की किरणों के प्रभाव अथवा तेज से बढ़ता है और सूर्य की किरणें पृथ्वी तक पहुंचने के बाद इनकी अतिरिक्त गर्मी वायुमंडल में मौजूद धूल के कणों एवं बादलों से परावर्तित होकर वापस अंतरिक्ष में लौट जाती है।
इस प्रकार पृथ्वी के तापमान का संतुलन बरकरार रहता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो से वायुमंडल में हानिकारक गैसों का जमावड़ा बढ़ते जाने और इन गैसों की वायुमंडल में एक परत बन जाने की वजह से पृथ्वी के तापमान का संतुलन निरंतर बिगड़ रहा है। मौसम वैज्ञानिको का मानना है कि ग्लोबल वाॅमिंग की वजह से ही अब हर साल गर्मी के मौसम में जरूरत से ज्यादा गर्मी पड़ने लगी है। वहीं बारिश पिछले कई सालों से औसत से कम हो रही है।