हैरानी की बात यह है कि इस गंभीर मामले की जानकारी विभाग को काफी समय से थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
CCF संजीव चतुर्वेदी का खुलासा और जांच की मांग
चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट (CCF) वर्किंग प्लान, IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने इस पूरे मामले को उजागर किया है। उन्होंने प्रमुख वन संरक्षक (HoFF) को लिखे पत्र में एसआईटी जांच या न्यायालय की निगरानी में CBI जांच की मांग की है।
उनका कहना है कि पिलर हटाने के पीछे विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत हो सकती है। साथ ही उच्च राजनीतिक संरक्षण की संभावना भी जताई गई है।
रिपोर्ट में क्षेत्रवार बाउंड्री पिलर का ब्योरा
साल 2023 में तैयार रिपोर्ट के मुताबिक अलग-अलग वन रेंज से गायब पिलर की संख्या इस प्रकार है—
-
भद्रीगाड़: 62 पिलर
-
जौनपुर: 944 पिलर
-
देवलसारी: 296 पिलर
-
कैंपटी: 218 पिलर
-
मसूरी क्षेत्र: 4,133 पिलर
-
रायपुर क्षेत्र: 1,722 पिलर
कुल मिलाकर 7,375 सीमा स्तंभ गायब पाए गए।
अतिक्रमण की आशंका और बड़ा षड्यंत्र
विशेषज्ञों का अंदेशा है कि इन पिलरों को हटाकर वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण किया गया है।
IFS संजीव चतुर्वेदी ने पत्र में लिखा है कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र हो सकता है, जिसमें बड़े स्तर पर वन भूमि को कब्जाने की कोशिश की गई।
डिजिटाइजेशन और सैटेलाइट सर्वे से खुल सकता राज़
वन क्षेत्र के डिजिटाइजेशन और सैटेलाइट इमेजिंग के जरिए इस घोटाले की परतें खोली जा सकती हैं।
-
इससे पता लगाया जा सकेगा कि अतिक्रमण किन अफसरों के कार्यकाल में हुआ।
-
कौन-कौन से क्षेत्रों में वन भूमि कब्जाई गई।
संपत्ति जांच की भी मांग
IFS संजीव चतुर्वेदी ने अधिकारियों और कर्मचारियों की संपत्ति जांच की भी सिफारिश की है। उनका कहना है कि अगर इस घोटाले में मिलीभगत है तो अवैध आय की जांच करके दोषियों की पहचान करना जरूरी है।
निष्कर्ष
मसूरी वन प्रभाग से 7,375 बाउंड्री पिलर गायब होना सिर्फ वन विभाग की लापरवाही नहीं बल्कि एक बड़े घोटाले की आहट है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि क्या सरकार और विभाग इस मामले की CBI जांच कराते हैं या फिर यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।