सीएम पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का गहराया सवाल।
रिपोर्ट-विजय रावत
NH-74 भूमि मुआवजा घोटाले में आरोपी सबसे वरिष्ठ अफसर आईएएस पंकज कुमार पांडे के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अब खुद ही अनुमति नहीं दे रहे हैं गौरतलब है कि उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव अपने चरम पर था तो जीरो टोलरेंस का ढोल पीटने के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आनन-फानन में nh-74 घोटाले मामले में पंकज कुमार पांडे सहित चंद्रेश यादव को निलंबित कर दिया था जैसे ही लोकसभा चुनाव खत्म हुए और भाजपा उत्तराखंड से पांचों सीटें जीती वैसे ही इन दोनों का निलंबन खत्म करके दोनों को प्राइम पोस्टिंग दे दी गई ,यही नहीं इस घोटाले के एक और आरोपी डीपी सिंह को रुद्रप्रयाग का डिप्टी कलेक्टर बना दिया गया तथा तीरथ पाल सिंह को उत्तरकाशी के एडीएम के पद पर तैनाती दे दी गई डीपी सिंह और तीरथ पाल सिंह की हाजिरी माफी को निरस्त करते हुए हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिए हैं लेकिन एसआईटी के हाथ अब काफी बंध चुके हैं और उसे बांधने के लिए और कोई जिम्मेदार नहीं है बल्कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सीधे-सीधे जिम्मेदार हैं काफी लंबे समय से SIT पंकज कुमार पांडे के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांग रही है लेकिन चुनाव खत्म होते ही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पंकज कुमार पांडे को स्वास्थ्य सचिव बना डाला ,स्वास्थ्य जैसा महत्वपूर्ण विभाग त्रिवेंद्र सिंह रावत के अधीन ही है भला ये किस तरह की जीरो टोलेंरेंस है जो भ्र्ष्टाचार का आरोप लगने के बाद भी पंकज कुमार पांडे शुरू से ही मलाईदार पदों पर रहे हैं एक तरफ जहां उधम सिंह नगर डीएम रहते उन्होंने घोटाले को अंजाम दिया था उसके बाद मुख्यमंत्री ने उन्हें अपने अधीन सूचना विभाग में सचिव के पद पर तैनाती दी और अब वह मुख्यमंत्री के अधीन स्वास्थ्य सचिव बने हुए हैं इससे मुख्यमंत्री पर ही भृष्ट अधिकारियों को सरंक्षण देने पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं लेकिन क्योंकि अभी हाल में 2022 तक कोई चुनाव नहीं है इसलिए मुख्यमंत्री को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता । किंतु अनुमति न मिलने से भूमि मुआवजा घोटाले की जांच कर रही एसआईटी अपने आपको काफी हतोत्साहित महसूस कर रही है जब भ्रष्टाचार के खिलाफ मुख्यमंत्री का ही संरक्षण होगा तो भला जीरो टोलरेंस का सपना साकार कैसे हो सकता है।