सूबे का नौकरशाही पर बजट खर्च करने की जिम्मेदारी होती है। मगर उसका आलम यह है कि वह बीते बरस में केवल 62.19 प्रतिशत बजट ही खर्च कर पाई है यानी प्रदेश का करीब 38 फीसद बजट बिना खर्च किए ही रह गया है। हालांकि इसका अंदाजा दिसंबर से ही लगने लगा था क्योंकि 31 दिसंबर 2021 तक यानी तीन तिमाही में प्रदेश सरकार बजट का 43.37 फीसद ही खर्च कर पाई थी। अब वित्तीय वर्ष 2021–22 बाकी बचे तीन महीने यानी एक जनवरी 2022 से 31मार्च 2022 तक सरकारी मशीनरी केवल 18.82 फीसद यानी करीब 19 फीसद बजट ही खर्च कर पाई। दिलचस्प बात यह भी है कि प्रदेश सरकार 31 मार्च तक कुल बजट का केवल 71.02 फीसद बजट ही मंजूर कर पाई। सवाल यह है कि क्या बजट खर्च की गति को सत्तारुढ़ दल के प्रदेश में एक साल के भीतर तीन–तीन मुख्यमंत्री बदलने और फिर चुनाव आचार संहिता ने बाधा ड़ाली।
बहरहाल वित्त विभाग के 31 मार्च तक के आंकड़़ों के मुताबिक प्रदेश का 2021–22 का बजट 64485.18 करोड़़ रुपये है। इसमें से 45797.38 करोड़़ ही मंजूर किए गए और खर्च हुआ केवल 40105.88 करोड़़ रुपये। कुल मंजूर बजट के मुकाबले केवल 71.02 फीसद धन को ही स्वीकृति मिली । कुल स्वीकृत बजट के सापेक्ष कुल व्यय 87.57 फीसद खर्च हुआ।
विस्तार में जाएं तो और सबसे ज्यादा बजट खर्च करने वाले विभागों की बात करें तो ऊर्जा ‚ उरेडा‚ जिला योजना व गन्ना विभाग सबसे ऊपर हैं। ऊर्जा विभाग और उरेडा ने सबसे अधिक यानी कुल मंजूर बजट का सौ–सौ फीसद बजट खर्च किया है। जिला योजना में कुल मंजूर बजट का 99.46 फीसद और गन्ना विभाग का कुल मंजूर बजट का 99.22 फीसद बजट खर्च हो गया है। बजट खर्च में आवास विभाग सबसे फिसड्ड़ी साबित हुआ है। आवास विभाग कुल मंजूर बजट का 43.96 फीसद ही खर्च कर पाया। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग इससे कुछ ज्यादा यानी कुल मंजूर बजट का 58.09 फीसद ही खर्च कर सका। इसके अलावा भाषा विभाग 65.23 प्रतिशत‚ कला एवं संस्कृति विभाग 65.28 प्रतिशत व युवा कल्याण विभाग 65.66 फीसद खर्च के साथ खर्च में फिसड्ड़ी विभागों में शुमार रहे।