यहां प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कुल 584 मकानों का निर्माण किया गया। मार्च 2025 में निर्माण कंपनी द्वारा लाभार्थियों को कब्जा पत्र सौंप दिए गए, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि मकान पूरी तरह से तैयार हैं और लाभार्थियों को अधिकार पूर्वक सौंपे जा रहे हैं। अधिकारियों ने बड़े-बड़े कार्यक्रम और पोस्टर लगाकर चाबियां बांटने का प्रचार-प्रसार किया, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है।
अधूरी सुविधाएं, अधूरे मकान
लाभार्थियों को आज तक अपने मकानों में रहने की अनुमति नहीं मिल पाई है क्योंकि निर्माण कार्य अब भी अधूरा है।
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सीवर सिस्टम अभी तक तैयार नहीं किया गया है, जिससे शौचालय का उपयोग नहीं हो पा रहा।
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बाथरूम, शौचालय, रसोईघर में पानी की सप्लाई नहीं दी गई है, और टोटियां तक नहीं लगाई गईं।
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मकान पूरी तरह तैयार नहीं हैं, और परिसर की सड़कें भी अधूरी हैं।
निर्माण कंपनी की लापरवाही और अधिकारियों की मिलीभगत से लाभार्थियों के अधिकारों के साथ गंभीर खिलवाड़ हो रहा है।
बैंक की अनदेखी ने और बढ़ाई मुसीबत
केवल निर्माण कंपनी ही नहीं, बैंक की लापरवाही भी इन लाभार्थियों की समस्याओं को और बढ़ा रही है। बैंक द्वारा आवास ऋण तो उपलब्ध कराया गया, लेकिन ब्याज दर, किस्तों की शुरुआत और देय रकम के बारे में समय पर कोई सूचना नहीं दी गई।
इसका परिणाम यह हुआ कि अधिकांश लाभार्थियों के नाम पर अब तक ₹30,000 से ₹35,000 ब्याज और आठ किस्तों का ₹32,000 तक बकाया हो चुका है। कुल मिलाकर ₹60,000 से ₹65,000 तक की देनदारी बन चुकी है।
एक मध्यमवर्गीय परिवार, जो पहले से ही किराये पर जीवन बिता रहा था और प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से अपने घर का सपना देख रहा था, आज कर्ज और अधूरे घर के बोझ तले दब चुका है।
जांच की मांग
इस पूरे मामले को लेकर हरदीप शर्मा, रवि कुमार और राहुल कुमार ने प्रधानमंत्री, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और उत्तराखंड आवास एवं विकास परिषद को पत्र भेजकर निर्माण कंपनी की लापरवाही की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
लाभार्थियों की स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि संबंधित एजेंसियों और अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए ताकि इस महत्वाकांक्षी योजना का वास्तविक लाभ जरूरतमंदों को मिल सके।