प्रदेश में पोखरो टाइगर सफारी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जा रहा है
कार्बेट टाइगर रिजर्व में जिन तमाम अनियमितताओं के चक्कर में बड़े वनाअधिकारी सस्पेंड हुए, कार्बेट के निदेशक मुख्यालय से अटैच हुए, ये सब गड़बड़ियां पीएम मोदी के कथित ड्रीम प्रोजेक्ट की आड़ लेकर हुई। पता चला है कि कार्बेट टाइगर रिजर्व में प्रस्तावित पाखरो में टाइगर सफारी प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री ड्रीम प्रोजेक्ट नहीं था। यह खुलासा हुआ है सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय प्राधिकार सम्पन्न कमेटी की कार्बेट में अवैध निर्माण को लेकर दिल्ली में हुई बैठक में । सूत्रों के मुताबिक कमेटी के सामने प्रमुख सचिव वन रमेश कुमार सुधांशु ने शुक्रवार को यह स्पष्ट किया।
बता दें कि राज्य में पोखरो टाइगर सफारी को मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जाता रहा है आरके सुधांशु ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी से कहा कि इस टाइगर सफारी प्रोजेक्ट को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय का कोई भी लिखित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी पूछा है कि आखिर इस विवादित टाइगर सफारी में पीएम मोदी का नाम कैसे जुड़ा ?
हालांकि कमेटी के सामने पेश दस्तावेज बताते हैं कि केंद्र सरकार ने जून 2015 में ही कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बफर जोन पाखरो में घायल बाघों के पुनर्वास व उन पर शोध के लिए रेस्क्यू सेंटर कम सफारी बनाने की इजाजत दे दी थी । यानि की डिस्कवरी चैनल के टीवी शो मैन वर्सेस वाइल्ड के फरवरी 2019 के पीएम मोदी वाले एपिसोड से कई साल पहले इसी वक्त कुछ वन अधिकारियों ने दावा किया कि पार्क रोड टाइगर सफारी का विचार पीएम मोदी ने दिया था।
वही बताया जा रहा है कि इस तरह से पीएम मोदी का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट बताकर तमाम मजबूरियां जल्द से जल्द लेने की कोशिश की गई।
पीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट के नाम पर 2020 में लॉकडाउन के दौरान तीन निर्माण कार्य पूरे कर लिए गए करीब 106 हेक्टेयर जमीन को परियोजना के लिए साफ कर दिया गया।
अब कमेटी ने प्रदेश को मुंह फाइलें पेश करने को कहा और यह वजह पूछे कि आखिर पापों को टाइगर सफारी के लिए क्यूं चुना गया ?