प्रेस कार्ड दिखाने के बाद भी पत्रकारों से सवाल-जवाब कर रही पुलिस
– तो क्या लॉक डाउन में पत्रकारों को भी प्रशासन देगा अनुमति?
– मोदी ने पत्रकारों को कहा वारियर और पुलिस लगा रही उनके लिए बेरियर
देहरादून। बीते कुछ दिनों से कोरोना वाइरस के चलते पूरा प्रदेश लॉकडाउन है। आवश्यक वस्तुओं की दुकानों को छोड़कर सभी बाजारो में अन्य दुकाने पूरी तरह से बंद है। गृह मंत्रालय के एक पत्र के अनुसार पुलिस, सफाईकर्मचारी, स्वास्थ्यकर्मी, और मीडियाकर्मियों को छोड़कर किसी को भी लाकडाउन के दौरान बाहर घूमने की अनुमति नही है।हालांकि बीमार, गर्भवती महिलाओं, और अन्य आवश्यक कार्यो के लिए आने-जाने वाले लोगो के लिए, ऑनलाइन पास एसडीएम, और एडीएम कार्यलय से जारी किए जा रहे है।
वहीं प्रदेश में लाकडाउन का पूरी तरह पालन किया जा रहा है। लेकिन प्रदेश के कई हिस्सों में पत्रकारों को पुलिस के द्वारा पास मांग कर जलील किया जा रहा है। जबकि पत्रकारों के द्वारा मौके पर संस्थान का आईडी कार्ड भी दिखाया जा रहा है। लेकिन जनपद की सीमाओं पर तैनात पुलिस के जवान, पत्रकारों से तरह-तरह के सवाल-जबाब पूछ कर अपमानित कर रहे है।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा जारी पत्र में भी यह स्पष्ठ किया गया है कि, मीडिया का इस महामारी में जनता को जागरूक करने का अहम योगदान है। मीडियाकर्मियों और उनके वाहनों को लेकर कंही भी कोई प्रतिबंध नही रहेगा। साथ ही स्थानीय सरकारों को यह भी निर्देश किया गया है कि, जरूरत पड़ने पर मीडिया कर्मियों के वाहनों को ईंधन की पूर्ति भी करवाई जाए।
ताजा मामला पौड़ी जनपद की पुलिस चौकी श्रीनगर के पास कालियासोड और पौड़ी चुंगी का है। जहां पर पुलिस विभाग के द्वारा पुलिस उपनीराक्षको की तैनाती की गई है। लेकिन इन तैनात दरोगाओं के रौब ऐसे, पहले तो यह पत्रकारों को सवाल-जबाब कर जलील कर रहे है, उसके बाद ज़िलाधिकारी द्वारा जारी पास की मांग कर रहे है। जबकि प्रेस प्रतिनिधियों को अलग से कोई पास जारी करने का कोई स्पष्ठ आदेश न तो सूचना प्रसारण मंत्रालय ने कोई गाइडलाइन जारी की है, न ही उत्तराखंड सरकार ने यंहा तक कि, पुलिसकर्मी पत्रकारों की बीट भी तय कर रहे है। लेकिन उनको कौन समझाए कि, सोशल मीडिया यानी समाचार पोर्टल के कई पत्रकार उत्तराखण्ड में है। जिनको की समाचार संकलन के लिए जनपद से बाहर भी जाना होता है।
अब पुलिस को पत्रकारों से खतरा है क्या
जबकि सब्जी के ट्रक बगैर अनुमति के फर्जी आवश्यक सेवा का पैम्पलेट चिपका कर सवारी ढोकर धडल्ले से आवाजाही कर रहे है, और पुलिस उन पर लगाम नही लगा पा रही है। जिसका गुस्सा पुलिस पत्रकारों को जलील करके निकाल रही है। गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री मोदी ने इस महामारी की घड़ी में पत्रकारों, पुलिसवालो, सफाईकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों को एक कैटिगरी में रखा है। लेकिन यह समझ से बाहर है कि, पत्रकारों को जलील करने का अधिकार पुलिस को किसने दिया?