वेश्यावृत्ति या जिस्मफरोशी कहिए। ये एक किस्म का कारोबार होता है। जिसमें पैसों के लिए शारीरिक रिश्ते बनाए जाते हैं। इस कारोबार को करने वाले शख्स को वेश्या कहा जाता है। लेकिन समाज में इन्हें उचित सम्मान नहीं मिल पाता है।
ऐसे में आधुनिक समय आया तो वैश्या के स्थान पर यौन कर्मी शब्द उपयोग में लाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृत्ति को लेकर गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाया है। कई अहम दिशा-निर्देश दिए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वेश्यावृत्ति भी एक प्रोफेशन है। इससे जुड़े तमाम लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए। फिर चाहे उनका परिवार हो, बच्चे हो या कोई और। कोर्ट ने ये भी कहा कि गिरफ्तारी छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान यौन कर्मियों की पहचान उजागर ना की जाए। चाहे वो पीड़ित हो, चाहे वो आरोपी हो।
ऐसी किसी भी तस्वीर का प्रसारण या प्रकाशन ना हो। जिससे उनकी पहचान का खुलासा हो। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस बलों को यौन कर्मी और उनके बच्चों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करने और अच्छी भाषा का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए है।
कोर्ट ने आदेश दिया कि सेक्स वर्कर के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप ना करें। पुलिस को बालिग और सहमति से सेक्स वर्क करने वाली महिलाओं पर आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि देश में सभी व्यक्तियों को जो संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है, उसे उन अधिकारियों द्वारा ध्यान में रखा जाए जो अनैतिक व्यापार अधिनियम 1956 के तहत कर्तव्य निभाते हैं।
सर्वोच्च न्ययालय ने कहा कि यौन उत्पीड़न की पीड़ित किसी भी यौन कर्मी को कानून के अनुसार तत्काल चिकित्सा सहायता दी जानी चाहिए। यौन उत्पीड़न की पीड़िता को उपलब्ध सभी सुविधाएं मुहैया करवाई जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ये देखा गया है कि यौन कर्मियों के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर ठीक नहीं रहता है। पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यौन कर्मियों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। सभी नागरिकों को संविधान में प्रदत्त सभी बुनियादी मानव अधिकार और अन्य अधिकार प्राप्त है।
ऐसे में पुलिस को सभी यौन कर्मियों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए। उनके साथ अच्छी भाषा का इस्तेमाल किया जाए। हिंसा तो कतई ना हो। उधर, अदालत ने ये भी कहा कि भारतीय प्रेस परिषद से मीडिया के लिए उचित दिशा निर्देश जारी किए जाएं। ताकि गिरफ्तारी छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान यौन कर्मियों की पहचान उजागर ना हो। फिर चाहे वो पीड़ित हो, या आरोपी।
ऐसी कोई भी तस्वीर प्रकाशित या प्रसारित ना हो, जिससे उनकी पहचान सामने आ सके। शीर्ष अदालत ने उस याचिका पर सुनवाई की जिसमें कोविड-19 महामारी के कारण यौन कर्मियों को आ रही मुश्किलातों की बात की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को आश्रय ग्रहों का सर्वेक्षण करने के भी निर्देश दिए हैं ताकि व्यस्क महिलाओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में लेने के मामलों की समीक्षा की जा सके। साथ ही समयबद्ध तरीके से रिहाई के लिए कार्रवाई की जा सके। साथ ही अदालत ने यौन कर्मियों के पुनर्वास के लिए गठित एक समिति की सिफारिशों पर ये निर्देश दिए हैं।