देहरादून : विधानसभा से बर्खास्त हुए कर्मचारियों के समर्थन में सामने आए पूर्व सीएम हरीश रावत, बोले यदि 2014 से बाद वाले कर्मचारियों की नियुक्ति गलत, तो राज्य गठन से 2014 तक हुई नियुक्ति कैसे वैध, बर्खास्त कर्मचारियों को किया जाए बहाल या शेष सभी कर्मचारियों को भी किया जाए बर्खास्त
देहरादून। विधानसभा से बर्खास्त हुए कर्मचारियों के समर्थन में पूर्व सीएम हरीश रावत आए हैं। उन्होंने कहा कि यदि 2014 से बाद वाले कर्मचारियों की नियुक्ति गलत है, तो राज्य गठन से 2014 तक हुई नियुक्ति कैसे वैध हो सकती हैं। क्योंकि सभी कर्मचारी एक ही प्रक्रिया से विधानसभा में नियुक्त हुए। कहा कि बर्खास्त कर्मचारियों को तत्काल बहाल किया जाए राज्य गठन से लेकर 2014 तक वाले कर्मचारियों को भी बर्खास्त किया जाए।
पूर्व सीएम हरीश रावत ने कर्मचारियों की बर्खास्तगी पर सवाल उठाए। कहा कि राज्य गठन से लेकर 2014 तक नियुक्त हुए कर्मचारियों की नियुक्ति यदि वैध है, तो बाद वाले कर्मचारियों की नियुक्ति कैसे गलत हो गई है। यदि बाद वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है, तो पुराने वाले कर्मचारियों को भी बर्खास्त कर न्याय किया जाए। पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि राज्य विधानसभा के अस्तित्व में आने के बाद से विधानसभा अध्यक्ष और सरकार की सहमति से तय नियमावली के तहत नियुक्त किए गए कर्मचारी काम करते आ रहे हैं। हर स्पीकर ने अपने कार्यकाल में ऐसी नियुक्तियां की। ऐसी नियुक्तियां 2021-22 तक तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल तक हुईं। फिर अचानक सवाल उठा कि यह नियुक्तियां वैध नहीं हैं। एक समान प्रक्रिया के तहत नियुक्त लोगों में से 2014 के बाद जितने भी लोग नियुक्त हुए, उन सभी को विधानसभा की सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
कहा कि पांच साल सेवा करने के बाद बर्खास्त हुए कर्मचारी अपनी बहाली को उच्च न्यायालय की शरण में हैं। एक लंबी कानूनी प्रक्रिया को झेल रहे हैं। शासन का उद्देश्य जनकल्याण है। यदि नियुक्ति की प्रक्रिया में कुछ त्रुटियां रही हैं तो उन त्रुटियां का निराकरण भी शासन को ही निकालना होता है। शासन, शासन होता है। केवल राजनीतिक व्यवस्था बदलती है। शेष प्रक्रियाएं शासन की यथावत रहती हैं। यह नहीं कहा जा सकता है कि यह किस अध्यक्ष के द्वारा नियुक्त लोग हैं या किस पार्टी के शासनकाल के अंतर्गत नियुक्त लोग हैं।
कहा कि एक बार नियुक्त किया गया कर्मचारी, वह विधानसभा का कर्मचारी है, वह राज्य का कर्मचारी है। इन बर्खास्त कर्मचारियों की अपनी कोई भूल नहीं है। उन्होंने कुछ तथ्य छुपाए नहीं हैं, उन्हें एक सिस्टम के तहत नियुक्ति दी गई है। यही कारण है कि पहले विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल से जो नियुक्ति की परंपरा चली आई थी, उसी परंपरा के तहत यह सब कर्मचारी 2022 तक नियुक्ति पाए हैं। यदि कहीं नियुक्तियों में कुछ पारदर्शिता नहीं है तो उसके लिए तथ्य जुटा कर नियुक्ति विशेष पर कार्रवाई की जा सकती है। उसकी आड़ में एकमुश्त एक तिथि विशेष तक के कर्मचारियों को बर्खास्त करना सही नहीं है। यदि यह प्रक्रिया गलत है तो फिर यह प्रक्रिया आधी सही, आधी गलत कैसे हो सकती है? यदि यह गलत प्रक्रिया के तहत नियुक्त हुए हैं, तो जो प्रारंभ से नियुक्ति पाए हैं, उन्हें भी बर्खास्त किया जाए। कुछ कर्मचारियों को दंडित करना और कुछ को छोड़ देना सही नहीं है।
हरीश रावत ने कहा कि इस विषय का मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष मिल कर समाधान निकालें। इसके लिए पूर्व विधानसभा अध्यक्षों से परामर्श कर समाधान निकाला जा सकता है। बर्खास्त कर्मचारियों को न्याय के आग्रह के लिए कोर्ट के समक्ष जाने की बजाय नियुक्ति कर्ता सरकार और विधानसभा अध्यक्ष के पास से न्याय प्राप्त करने के अधिकार को हमें मान्यता देनी चाहिए। यह प्रश्न विधानसभा के न्यायिक विवेक का है? वर्तमान अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को इस विवेक का सम्मान करना चाहिए।