उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के दिन आज उत्तराखंड को 21 वर्ष पूरे हो गए हैं। लेकिन राज्य में नाकामियों का दर्द आज भी बढ़ता जा रहा है।
दरअसल, राज्य स्थापना के 21 वर्ष पूरे होने पर इन 21 सालों में राज्य ने कई उपलब्धियां हासिल की है, लेकिन साथ ही नाकामियों के पहलू आज भी यहां पर मौजूद हैं। जिनकी कसक अभी तक दूर नहीं हो पाई है।
राज्य में जहां विकास कार्य की रफ्तार तेजी से प्रगति की ओर जारी है, वही कुछ पहलू अंदर ही अंदर राज्य को खोखला कर रहे हैं। एक सिरे से तो राज्य विकास कार्य में बहुत दूर तक की छलांग लगा चुका है। लेकिन रोजगार, पलायन और आपदा प्रबंधन जैसे अनेक पहलू ऐसे हैं जिनकी वजह से राज्य नाकामियों की और डूबा जा रहा है।
अपनी संस्कृति, वेशभूषा, पहनावा, रीति रिवाज, जैसी कई चीजें हैं, जो धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं। लेकिन राज्य विकास की प्रगति में इतना आगे बढ़ चुका है कि, वह पीछे क्या-क्या छोड़ गया यह दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है।
इन 21 वर्षों में राज्य ने काफी उपलब्धियां हासिल की हैं, जो सराहनीय है। लेकिन राज्य के गाँवो से हो रहा पलायन, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन जैसी समस्याए जो आज भी गांवो में पैर पसारे हुई है।
जो पहले से पिछड़े थे, उनका विकास न के बराबर हुआ है। स्थापना दिवस को आज काफी धूमधाम से प्रदेश भर में मनाया जा रहा है, लेकिन सिर्फ अपनी उपलब्धियों को गिना कर, कोई भी पीछे छूटी हुई नाकामियों को नहीं देख रहा है और नजरअंदाज किए जा रहा है।
आखिर अपने में एक बड़ा प्रश्न खड़ा होता है कि, राज्य बनाना ही एक मकसद है? या पूर्णता श्रेष्ठ राज्य बनाना जिसमें नाकामियां न के बराबर हो।