हमेशा देखा गया है कि दादा-पोते में एक दोस्ती जैसी बॉन्डिंग नजर आती है। दादा अपने पोते को हमेशा खुश देखना चाहता हैं। दादा अपने पोते का हर सपना पूरा करना चाहता है। फिर चाहे एक गरीब परिवार हो या अमीर।
दादा-पोते का जिक्र हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि करीब 95 साल के पंडित सुखराम का आज निधन हो गया। पंडित सुखराम और उनके पोते आश्रय शर्मा का भी कुछ इसी तरह का रिश्ता था। जब-जब उनकी तबीयत खराब रही उनके पोते आश्रय शर्मा उन्हीं के साथ नजर आते रहे।
पंडित सुखराम के दूसरे पोते आयुष शर्मा की शादी सलमान खान की बहन अर्पिता से हुई है। वो दादा के साथ ज्यादा नजर नहीं आते रहे। लेकिन आश्रय शर्मा पंडित सुखराम के बेहद करीब रहे। शायद यही वजह है कि पंडित सुखराम जैसे-तैसे आश्रय शर्मा को चुनावी मैदान में उतारकर जीताना चाहते थे।
पंडित सुखराम आज खुद तो इस दुनिया से चले गए। लेकिन उनका एक सपना अधूरा रह गया। खुद लंबे समय तक राजनीति में अपना अहम किरदार निभाने वाले पंडित सुखराम ने अपने बेटे अनिल शर्मा को अपनी राजनीतिक विरासत सौंप दी थी। 2003 में पंडित सुखराम ने अपना आखिरी विधानसभा का चुनाव लड़ा और 2007 में सक्रिय राजनीति से संयास ले कर अनिल शर्मा को आगे कर दिया।
पंडित सुखराम की चाहा यहीं खत्म नहीं हुई। वो अपने पोते आश्रय शर्मा को राजनीति में एडजस्ट करवाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कई कोशिशें की। 2019 के लोकसभा चुनाव में सुखराम ने आश्रय शर्मा को टिकट के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। उन्होंने बहुत कोशिशें की। लेकिन भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया।
पंडित सुखराम इस बात से खासे नाराज हुए। उन्होंने ज्यादा समय नहीं लगाया और अपने पोते के साथ दिल्ली दरबार पहुंच गए। जहां कांग्रेस का उन्होंने फिर से हाथ थाम लिया। जिसके लिए उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा, उसमें वो कामयाब भी हुए।
पंडित सुखराम इस बात से खासे नाराज हुए। उन्होंने ज्यादा समय नहीं लगाया और अपने पोते के साथ दिल्ली दरबार पहुंच गए। जहां कांग्रेस का उन्होंने फिर से हाथ थाम लिया। जिसके लिए उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा, उसमें वो कामयाब भी हुए।
प्रतिभा सिंह का नाम जब दिल्ली हाईकमान को भेजा गया तब भी पंडित सुखराम ने एक बयान जारी किया और अपनी ही पार्टी को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। पंडित सुखराम का स्वास्थ्य उन दिनों खराब था। फिर भी उन्होंने आश्रय को दिल्ली बुलाया और सोनिया गांधी व राहुल गांधी से मुलाकात की।
इस दौरान पंडित सुखराम ने एक बयान जारी किया। कहा कि मंडी सीट से उपचुनाव पर टिकट की पहली प्रबल दावेदारी आश्रय शर्मा की बनती है। क्योंकि आश्रय ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था। उन्होंने ये भी कहा कि राठौर के ध्यान में यह बात लाना चाहता हूं कि टिकट किसे देना है और किसे नहीं, ये हाईकमान का फैसला है।
सुखराम ने कहा था कि अगर पिछले चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा है तो इसका मतलब ये नहीं कि भविष्य में उसे फिर कभी पार्टी की तरफ से टिकट ही नहीं मिलेगा।