उत्तराखंड की सामाजिक कार्यकर्ता राधा बहन भट्ट को 2025 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उनके सात दशकों से अधिक के योगदान के लिए प्रदान किया गया है।
प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा
राधा बहन भट्ट का जन्म 16 अक्टूबर 1933 को अल्मोड़ा जिले के धुरका गांव में हुआ था। उन्होंने माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद विवाह के बजाय समाज सेवा को चुना। 1951 में वे सरला बहन के संपर्क में आकर कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम से जुड़ीं। यहां उन्होंने पहाड़ी महिलाओं की शिक्षा और आत्मनिर्भरता के लिए काम किया।

सामाजिक आंदोलनों में सक्रियता
1957 में भूदान आंदोलन में भाग लिया और विनोबा भावे के साथ उत्तर प्रदेश और असम में पदयात्राएं कीं। 1975 में सरला बहन के 75वें जन्मदिन पर 75 दिनों की पदयात्रा के माध्यम से वन संरक्षण, चिपको आंदोलन, शराब विरोध और ग्राम स्वराज के लिए जनजागरूकता फैलाई।
शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण
उन्होंने उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में 25 बाल मंदिर स्थापित किए, जिससे लगभग 15,000 बच्चों को शिक्षा मिली। साथ ही, उन्होंने 1.6 लाख से अधिक पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अंतरराष्ट्रीय सहभागिता और साहित्यिक योगदान
राधा बहन ने डेनमार्क, अमेरिका, कनाडा, पाकिस्तान, स्वीडन और चीन में विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लिया, जहां उन्होंने महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और गांधीवादी विचारधारा पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने ‘हिमालय की बेटियां’ और ‘वे दिन वे लोग’ जैसी पुस्तकें लिखीं, जो जर्मन और डेनिश भाषाओं में भी प्रकाशित हुई हैं।
सम्मान और पुरस्कार
राधा बहन भट्ट को पद्मश्री के अलावा जमनालाल बजाज पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शिनी पर्यावरण पुरस्कार, गोदावरी गौरव पुरस्कार, मुनि सतबल पुरस्कार और कुमाऊं गौरव पुरस्कार जैसे कई अन्य सम्मान भी प्राप्त हुए हैं।
वर्तमान में
वर्तमान में, राधा बहन भट्ट कौसानी के लक्ष्मी आश्रम से जुड़ी हुई हैं और ‘नौला’ (जलस्रोत) संरक्षण अभियान चला रही हैं, जिसका उद्देश्य पारंपरिक जलस्रोतों का पुनर्जीवन करना है।
राधा बहन भट्ट का जीवन और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि समर्पण, दृढ़ता और सेवा की भावना से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।