पंचायत चुनाव में दोहरी वोटर लिस्ट का मामला फिर गरमाया, किसान मंच सुप्रीम कोर्ट तक जाने को तैयार
देहरादून | हस्तक्षेप विशेष रिपोर्ट
उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की प्रक्रिया पर कानूनी और नैतिक प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए हैं। किसान मंच उत्तराखंड ने आरोप लगाया है कि कई ऐसे प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं, जिनका नाम दोहरी मतदाता सूचियों (नगर निकाय और ग्राम पंचायत) में दर्ज है।
प्रदेश अध्यक्ष किसान पुत्र कार्तिक उपाध्याय के नेतृत्व में किसान मंच ने राज्य निर्वाचन आयोग को ज्ञापन सौंपकर 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। मंच का कहना है कि अगर आयोग ने कार्रवाई नहीं की, तो यह मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ले जाया जाएगा।
क्यों उठी आपत्ति?
किसान मंच का आरोप है कि आयोग ने चुनाव चिन्ह आवंटित करने से पहले प्रत्याशियों की मतदाता सूची की जांच नहीं की, जिससे अयोग्य व्यक्ति भी चुनाव मैदान में आ गए हैं।
यह सीधे-सीधे उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम और भारत निर्वाचन नियमावली का उल्लंघन है। यदि किसी व्यक्ति का नाम दोनों मतदाता सूचियों में हो, तो वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाएगा।
ज्ञापन में रखी गई चार प्रमुख मांगे:
1. प्रत्याशियों से नोटरीकृत शपथ-पत्र लिया जाए, जिसमें स्पष्ट हो कि उनका नाम केवल एक वोटर लिस्ट में है।
2. दोहरी सूची में दर्ज नामों को अयोग्य ठहराते हुए नामांकन निरस्त किया जाए।
3. जांच प्रक्रिया को पारदर्शी और सार्वजनिक किया जाए।
4. भविष्य में नामांकन से पहले पूर्व जांच अनिवार्य की जाए।
अल्टीमेटम और चेतावनी
किसान मंच ने चेताया है कि यदि 48 घंटे के भीतर संतोषजनक कार्रवाई नहीं हुई तो:
नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव प्रक्रिया रोकने की याचिका
आयोग और संबंधित अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई की मांग
किसान पुत्र कार्तिक उपाध्याय ने क्या कहा?
पंचायत चुनाव लोकतंत्र की बुनियाद है। अगर आयोग की लापरवाही से अयोग्य लोग चुनाव लड़ते हैं, तो यह लोकतंत्र के साथ अन्याय है। हम इसे निजी राजनीतिक मंशा की भेंट नहीं चढ़ने देंगे।
कानून की स्थिति स्पष्ट
उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति तभी पंचायत चुनाव लड़ सकता है जब उसका नाम केवल ग्राम पंचायत या केवल नगर निकाय की मतदाता सूची में दर्ज हो। दो जगह नाम होना स्पष्ट अयोग्यता है।
निष्कर्ष:
किसान मंच के इस हस्तक्षेप ने पंचायत चुनाव प्रक्रिया में वैधानिकता, पारदर्शिता और जवाबदेही जैसे सवालों को फिर से केंद्र में ला खड़ा किया है। यदि आयोग ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह मामला जल्दी ही न्यायपालिका की चौखट पर होगा — जहां सिर्फ जवाब नहीं, जवाबदेही भी तय होगी।