राज्य में वर्ष 2019-20 में उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा अभिकरण (UREDA) द्वारा इन फर्मों को सोलर प्रोजेक्ट आवंटित किए गए थे, जिन्हें एक वर्ष की अवधि में कार्य पूरा करना था। कोविड-19 महामारी के चलते देरी हुई तो निर्माण की समयसीमा पहले 31 मार्च 2024 और फिर 31 दिसंबर 2024 तक बढ़ा दी गई। लेकिन नियामक आयोग के समक्ष UREDA इस समयावधि विस्तार का ठोस आधार प्रस्तुत नहीं कर सका।
गंभीर लापरवाहियां उजागर
फर्मों द्वारा प्रस्तुत प्रगति रिपोर्ट में कई गंभीर खामियाँ सामने आईं।
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दो फर्मों ने लीज डीड में एक ही बैंक खाता नंबर दर्शाया।
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दो अन्य कंपनियों ने एक ही भूमि के दो अलग-अलग छोरों से Google Map लोकेशन दर्शा दी।
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अब तक न तो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हुई और न ही वित्तीय व्यवस्थाएं की गईं।
इन तथ्यों के मद्देनज़र, आयोग ने 27 मार्च 2025 को स्वतः संज्ञान लेते हुए इन सभी सोलर प्रोजेक्ट्स के आवंटन रद्द कर दिए थे।
आयोग ने पुनर्विचार याचिका को किया खारिज
सभी 12 फर्मों ने आयोग के इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की थी। लेकिन आयोग के अध्यक्ष एम.एल. प्रसाद और सदस्य विधि अनुराग शर्मा की पीठ ने पाया कि पुनर्विचार याचिका में कोई नया और ठोस तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया। आयोग ने UREDA और यूपीसीएल द्वारा प्रस्तुत जवाबों को भी असंतोषजनक बताया और पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं।
किन-किन कंपनियों को लगा झटका
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पीपीएम सोलर एनर्जी
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एआर सन टेक
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पशुपति सोलर एनर्जी
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दून वैली सोलर पावर
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मदन सिंह जीना
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दारदौर टेक्नोलॉजी
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एसआरए सोलर एनर्जी
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प्रिस्की टेक्नोलॉजी
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हर्षित सोलर एनर्जी
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जीसीएस सोलर एनर्जी
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देवेंद्र एंड संस एनर्जी
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डेलीहंट एनर्जी
राज्य के 2500 मेगावाट लक्ष्य को आंशिक नुकसान
उत्तराखंड सरकार ने 2023 में नई सौर ऊर्जा नीति लागू की थी, जिसके अंतर्गत 2027 तक 2500 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इन 12 प्रोजेक्ट्स के रद्द होने से करीब 15.5 मेगावाट क्षमता प्रभावित हुई है। हालांकि, आयोग ने स्पष्ट किया कि यदि इन योजनाओं में और देरी होती, तो उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPCL) को पुराने टैरिफ दरों पर बिजली खरीदनी पड़ती, जिससे राज्य को आर्थिक नुकसान होता।