शासन द्वारा शिक्षा विभाग में जिला स्तर के अफसरों को इलाके के निरीक्षण के लिए दिए गए वाहन छीन लिए गए। जिससे अफसरों के साथ ही शिक्षकों में भी इसे लेकर चौतरफा रोष है।
हालांकि इस बात को लेकर शासन को भी प्रस्ताव दिया गया है लेकिन शासन ने बजट का हवाला देकर मामले को टाल दिया।
एक तरफ तो शासन शिक्षा का स्तर उच्च करने की बात करती है वहीं दूसरी तरफ अफसरों से निरीक्षण के लिए जाने वाले वाहन भी छीन लेती है। आखिर सरकार शिक्षा को उत्तराखंड में किस गर्त में धकेलना चाहती है यह अपने आप में एक बड़ा सवाल बन जाता है।
जानिए पूरा मामला:
दरअसल शिक्षा विभाग के जिला स्तर के अफसरों के वाहन छिन जाने के बाद से ही वो परेशान है, क्योंकि उनके पास 100 किलोमीटर तक के इलाके निरीक्षण के लिए दिए हुए हैं।
ऐसे में जो उन्हें कलेक्ट्रेट के वाहन भी उपलब्ध कराए गए थे वह भी उनसे छीन लिए गए,इससे जो रोज के जरूरी निरीक्षण के कार्य हैं जैसे मिड डे मील एंड इत्यादि वह सब अटक गए हैं।
साथ ही जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक और मुख्य शिक्षा अधिकारियों को भी विभाग ने वाहन नहीं दिए हैं।
शिक्षा विभाग में जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक के पाठ समग्र शिक्षा का चार्ज था, इस पर उन्हें समग्र शिक्षा से सरकारी वाहन चालक मिले थे, जिससे वे दूरदराज के इलाकों में निरीक्षण को जाते थे लेकिन अब उनसे समग्र शिक्षक का चार्ज हटते ही वाहन भी छिन गए।
विभाग की ओर से कोई वाहन नहीं दिया गया जबकि जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक के पास जिले के सभी स्कूलों में मिड डे मील की अहम जिम्मेदारी है।
हर जिला शिक्षा अधिकारी के पास हजार से ज्यादा स्कूलों की जिम्मेदारी है।ऐसे में उन्हें लगातार निरीक्षण के लिए दूरदराज जाना पड़ता है।देहरादून से त्युनी डेढ़ सौ किलोमीटर की दुरी पर है। जहां डी.ई.ओ ओ निरीक्षण के लिए जाना पड़ता है ऐसे में खुद गाड़ी चला कर भी जाना नामुमकिन सा होता है।
सोशल मीडिया पर भी लोगों में आक्रोश
अफसरों से वाहन छीनने को लेकर सोशल मीडिया में भी लोगों में आक्रोश नजर आ रहा है। लोग लगातार सोशल मीडिया में लिख रहे हैं कि अभी तो शुरुआत है आगे आगे देखिए होता है क्या ! और भी अन्य इसी तरह की कमेंट यूजर्स द्वारा सोशल मीडिया में की जा रही है।
इस मामले को लेकर हरिद्वार मुख्य शिक्षा अधिकारी से शिवप्रसाद सेमवाल ने अपनी सोशल मीडिया आईडी पर एक पोस्ट करते हुए लिखा कि
अब ठीक है!!
13 जिलों में CEO की गाड़ी मार्शल make 18 साल पुरानी हो गई है। अधिकारियों की गरिमा और सम्मान का इससे शानदार कोई और उदाहरण नहीं हो सकता है ।
राज्य में कोई दूसरा विभाग इस मामले में शिक्षा विभाग का मुकाबला नहीं कर सकता ।
जिले की बात तो बाद में मंडलीय अपर निदेशक भी 18 साल पुरानी मार्शल गाड़ियों में जोखिम उठाकर सफर कर रहे हैं।
उन्होंने आगे लिखा कि
आवाज उठाएंगे तो मेरे जैसे अंजाम तक पहुंचेंगे। इसलिए खामोशी के साथ निष्ठा पूर्वक जन सेवा करिए।
कभी तो होगी इस चमन पर भी बाहर की नजर अगर कहीं है।
स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर।
गाड़ी क्या है लोभ, लाभ, काम, क्रोध से मुक्त होकर निष्काम कर्म करते रहिए।
अगर जिंदा रहे तो वसुंधरा पर राज करोगे, मर गए तो स्वर्गद्वार तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है।
हरिद्वार मुख्य शिक्षा अधिकारी की इस तरह की पोस्ट पर नीचे से कुछ यूजर्स ने कमेंट किए हालांकि कमेंट तो काफी सारे आए लेकिन कुछ यूजर्स ने जो लिखा वह हम आपको बता रहे हैं।
एक यूजर ने कमेंट कर लिखा कि” साजिश के तहत शिक्षा विभाग को खत्म करने की तैयारी है। यह तो ईस्ट इंडिया कंपनी के समर्थक हैं। शिक्षा में सुधार के नाम पर हो-हल्ला मचाएंगे जैसे जय श्री राम के नाम पर मचा रहे हैं पर धरातल पर कुछ नहीं करेंगे। हां अपने लिए जरूर नए वाहन की खरीदारी का ऑर्डर दे दिया है।”
वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा कि “क्या विभाग को इन पदों की आवश्यकता नहीं है इन पदों पर नियुक्त अधिकारियों को वाहन की आवश्यकता नहीं”
सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर यूजर्स द्वारा कमेंट की बाढ़ आ गई है।
साथ ही सोशल मीडिया पर शिक्षक नेता मुकेश प्रसाद बहुगुणा ने तंज कसते हुए कहा कि,
शिक्षा के प्रति हम कितने संवेदनशील हैं, यह इस बात से पता चल जाता है कि आप अधिकारियों को वाहन नहीं देंगे, और उनसे उम्मीद करेंगे कि पूरे जनपद में स्कूलों का निरीक्षण कर आयें।बजरंगबली की तरह हवा में उड़ते हुए।
और दी भी कौन सी गाड़ी थी आपने? कुछ गाड़ियां तो 18-20 वर्ष पुरानी थी।यहाँ गढ़वाल मंडल के अपर निदेशक (जिन्हे सात जनपदों को देखना होता है) के पास जो गाड़ी है, वह जाने कब का एंटीक मॉडल है ( खटारा नमूना कह कर माननीय सरकार का अनादर न करें)… पुरातत्व विभाग भी रश्क करेगा शायद इस पर l
बात सिर्फ गाड़ी की ही नहीं, और भी है l
आप स्कूलों को प्रधानाचार्य नहीं देंगे, लेकिन चाहेंगे कि व्यवस्था शानदार जानदार असरदार चले।
आप संस्कृत, कला, संगीत में पद सृजित नहीं करेंगे, लेकिन यह इच्छा रखेंगे कि भव्य भारत वर्ष की संस्कृति कला फले फूले।
आप हर स्कूल में हर विषय के अध्यापक नहीं देंगे, लेकिन रिजल्ट चकाचक मांगेंगे।
आप समय पर प्रमोशन नहीं करेंगे, लेकिन चाहेंगे कि शिक्षकों का मनोबल उच्च रहे ( उच्च सूत्रों की माफिक)।
आप प्राथमिक स्कूलों में पूरे शिक्षक नहीं देंगे, अलबत्ता ये जरूर चाहेंगे कि जिस बच्चे को हिंदी तक ठीक से नहीं आती, वो बच्चा अटल स्कूल में जाते ही शेक्सपीयर और बायरन की तरह अंग्रेजी का विद्वान बन जाए।
आप अपने दिमाग में शिक्षा व्यवस्था के प्रति भरे कबाड़ को संभाल कर रखें और हमसे आशा करें कि इस कबाड़ को नई शिक्षा नीति का चमकता लेबल लगा कर पेश कर दें।