कोरोना को लेकर उत्तराखंड में डाक्टरों की सुरक्षा ही दांव पर
– एक ही लैब जांच मे देरी
देहरादून। कोरोना को देखते हुए उत्तराखंड के लिए अगले 10 दिन बेहद अहम माने जा रहे हैं। इसलिए सबसे ज्यादा बेहतर यही रहेगा कि, हम सिर्फ 22 तारीख को नहीं बल्कि लगभग एक सप्ताह तक जनता कर्फ्यू का पालन करें क्योंकि सिर्फ कल ही कल घर में रहकर और फिर उसके बाद दोबारा से सार्वजनिक स्थलों में व्यस्त हो जाने से कोरोना को सामाजिक स्तर पर फैलने से नहीं रोका जा सकता। नितेश झा ने लगाई राज्य में पर्यटकों के प्रवेश पर रोक। आज स्वास्थ्य सचिव नितेश झा ने घरेलू और विदेशी पर्यटकों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया है। स्थानीय स्तर पर भी यात्री यात्रा नहीं कर पाएंगे। साथ ही 31 मार्च तक 65 वर्ष से अधिक और 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को घर में ही रहने की एडवाइजरी जारी की है।
बीते वर्षों में डेंगू और स्वाइन फ्लू के अनुभव हमें बताते हैं कि, कोरोना से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर हमारा स्वास्थ्य विभाग और सरकार कितनी तैयार है। आपको याद होगा कि, डेंगू के दौरान हमें पैरासिटामोल के भरोसे छोड़ दिया गया था और स्वाइन फ्लू के बारे में तो हमारे मुख्यमंत्री जी ने साफ-साफ कह दिया था कि यह कोई बीमारी ही नहीं है। दिसंबर के महीने में कोरोना की महामारी और इसके प्रभाव चीन में देखे गए थे और इसके बाद इटली और स्पेन सहित अमेरिका जैसे देशों में इसका प्रभाव हमारे लिए सबक लेने और तैयारी करने के लिहाज से पर्याप्त समय था किंतु उत्तराखंड सरकार अधिकतर नोटिस भेजने और मीडिया में दिखावा करने के अलावा धरातल पर कोई ठोस तैयारी के प्रति गंभीर नहीं दिखती। सैनिटाइजर और मास्क को आवश्यक वस्तु घोषित करने के अलावा सरकार ने कहा है कि, इनकी कालाबाजारी की एफआईआर दर्ज की जाएगी।
कागज मे हीरो, ग्राउंड मे जीरो
उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल दून अस्पताल में कोरोना के संदिग्धों को रखने के लिए जगह ही नहीं है। उन्हें कोरोनेशन अस्पताल में भेजा जा रहा है। जबकि दून अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में अभी मात्र 8 संदिग्ध मरीज भर्ती हैं। इस आइसोलेशन वार्ड की हकीकत यह है कि, यहां पर कोरोना से संक्रमित 3 प्रशिक्षु आईएएस अफसरों के साथ ही एक ही वार्ड में संदिग्धों को भी रखा गया है। जाहिर है कि एक ही वार्ड में दोनों तरह के मरीजों को रखने से हालात कितने गंभीर हो सकते हैं। इसके अलावा इस वार्ड में घुसने वाले नेताओं और पत्रकारों के साथ जिस तरह से केवल नोटिस बाजी करके इतिश्री कर दी गई, उससे सरकार की गंभीरता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
अब अगर हम देहरादून के दूसरे अस्पताल कोरोनेशन अस्पताल की बात करें तो वहां पर कोरोना के संदिग्ध मरीजों की जांच कर रहे डॉक्टर एनएस बिष्ट और दूसरे सीएमएस के बीच की तनातनी से गंभीर अव्यवस्था के संकेत मिलते हैं। डॉक्टर एनएस बिष्ट ने साफ-साफ कहा है कि, उन्हें अस्पताल की ओर से सैनिटरी मास्क और अन्य दवाएं भी नहीं दी जा रही हैं। ऐसे में भला वह कैसे इलाज करेंगे।” वह खुद भी कोरोना की चपेट में आ सकते हैं। यहां तक कि अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक ने कहा है कि, डाक्टर बिष्ट मरीजों को देखने में आनाकानी कर रहे हैं, जबकि डॉक्टर बिष्ट का कहना है कि, वह कोरोना संदिग्ध मरीजों को देख रहे हैं। इसलिए वह सामान्य मरीजों को नहीं देख रहे। एनएस बिष्ट ने कहा कि, अस्पताल प्रशासन ने उन्हें मास्क तक नहीं दिया और अस्पताल में उन्हें बेड तक नहीं दिया गया है, जबकि वह घर भी नहीं जा रहे हैं।
डाक्टरों की सुरक्षा ही दांव पर
यही नहीं कोरोना की जांच के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सकों को भी ड्यूटी पर तैनात किया गया है। लेकिन हालत यह है कि, उन्हें न तो मास्क उपलब्ध कराए गए, न सैनिटाइजर दिया गया और ना ही पीपीई किट आदि उपलब्ध कराई गई।जब आयुर्वेदिक चिकित्सकों के प्रति ही सुरक्षा की यह लापरवाही है तो आप समझ सकते हैं कि सामान्य आदमियों और सामान्य मरीजों के प्रति स्वास्थ्य महकमा कितना सजग और चिंतित है। प्रांतीय आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा संघ के प्रांतीय महासचिव डॉ हरदेव सिंह रावत और जीएन नौटियाल ने राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि, एलोपैथिक चिकित्सकों की तरह की आयुर्वेदिक चिकित्सकों को भी सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। आयुर्वेदिक चिकित्सक नेपाल सीमा पर 15 दिन से दिन रात काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें न तो कोई मास्क सैनिटाइजर कुछ नहीं दिया जा रहा है और ना ही उन्हें कोई अलग से बजट दिया गया है। जबकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि, कोरोना से निपटने के लिए बजट की कमी नहीं है और 60 करोड़ रु कोरोना से निपटने के लिए दे दिए गए हैं जाहिर है कि, उत्तराखंड को बहुत जल्दी ही लगभग 3 नई लैब और दो-तीन आईसीयू के साथ ही लगभग चार चार सौ बैड के अस्पतालों की हल्द्वानी और दून में अलग से जरूरत पड़ेगी।
एक ही लैब, जांच मे देरी
हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में भी कोरोना के संदिग्ध मरीजों को रखने के लिए बनाया गया वार्ड ओपीडी के बगल में ही है। जिससे सामान्य मरीजों की भी संक्रमित होने की काफी संभावना है। इसके बावजूद कोरोना के मरीजों और संदिग्धों को रखने के लिए अलग से कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है। कोरोना के संदिग्धों के सैंपल देहरादून से हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में भेजे जा रहे हैं पूरे प्रदेश में मात्र एक लैब होने के कारण उन पर इतना वर्क लोड है कि अभी पिछले 29 सैंपलों की जांच रिपोर्ट चार-पांच दिन से भी अभी तक आई नहीं है। बृहस्पतिवार को 19 व्यक्तियों के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। देखते हैं इनकी रिपोर्ट कब तक आती है।
सरकार की उदासीनता इस बात से ही देखी जा सकती है कि, उत्तराखंड में मान्यता प्राप्त लैब महंत इंद्रेश अस्पताल में है और वहां के महंत देवेंद्र दास ने तीन दिन पहले सरकार से यह अनुरोध किया था कि, कोरोना वायरस को देखते हुए उनकी लैब को भी सैंपल की जांच के लिए अधिकृत किया जाए, किंतु इस अपील पर भी सरकार अथवा केंद्र ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। यदि देहरादून में भी इस लैब को मान्यता मिल जाती तो सैंपल की जांच रिपोर्ट मिलने में तेजी आ सकती है। देहरादून से लेकर अन्य जिलों में मास्क और सैनिटाइजर की कालाबाजारी पर भी रोक लगाने की प्रभावी कार्यवाही अभी तक नहीं हो पाई है।
कोरोना वायरस रोकथाम को आयुर्वेदिक डॉक्टरों की तैनाती, ताक पर सुरक्षा
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग ने आयुर्वेदिक डॉक्टरों की सेवाएं लेनी शुरू कर दी है। जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी, देहरादून डॉ जेपी सेमवाल ने बीस आयुर्वेदिक डाक्टरों एवं बीस फार्मासिस्टों को सीएमओ देहरादून के अधीन करने के आदेश जारी किए हैं। लेकिन इनकी अपनी सुरक्षा ताक पर है। आयुर्वेद विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, चिड़ियामण्डी के डॉक्टर अजय चमोला, विधौली के डॉ पंकज बच्चस, दून चिकि० की डॉ मीरा रावत, डॉ अंकिता शाह, सेलाकुई से डॉ भारती राजपूत, झाझरा से डॉ अमित यादव, गुजराड़ा से डॉ अमित रावत, इठारना से डॉ उत्तरा पाल, कण्डोली से डॉ सरिता राय, बुल्लावाला से डॉ विनीता सकलानी, निरंजनपुर से डॉ संगीता उनियाल, ऋषिकेश से डॉ लक्ष्मण राणा, क्यारा से डॉ सुचिता गिरी, मिंयावाला से डॉ कुसुम खाती, धौलास से डा० भावना भदौरिया, नाहींकला से डॉ रेखा आर्य, लाखामण्डल से एमएस रावत, जस्सौंवाला से डॉ दीपांकर बिष्ट को मेडिकल टीमों में तैनात किया गया है।
आयुर्वेद विभाग ने कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए डॉ राजेश जोशी को देहरादून जनपद का नोडल अधिकारी एवं डॉ डीसी पसबोला को जनपद का ग्रुप लीडर बनाया गया है। एक अहम तथ्य यह भी है कि, बेहद जोखिम में काम कर रहे फार्मेसिस्ट को जोखिम भत्ता भी नहीं दिया जा रहा है। जबकि डॉक्टरों की तरह इनका जोखिम भी बराबर है। फार्मासिस्ट एसोसिएशन ने जोखिम भत्ता दिए जाने की मांग की है। देखना यह है कि, सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है। जाहिर है कि, आगामी 10 दिन बेहद अहम हैं और लोगों को आपस में एक दूसरे से घुलने मिलने में पूरी तरह से पाबंदी लगानी होगी और साफ-सफाई का ध्यान रखना होगा। किसी भी तरह के संक्रमण से संबंधित लक्षण दिखने पर कोरोना के लिए बनाई गई हेल्पलाइन 104 पर सूचना दी जा सकती है।