मां नंदा का पौराणिक मंदिर। अटूट आस्था का प्रतीक- नंदकेसरी मंदिर
रिपोर्ट- गिरीश चंदोला
देवाल। गढ़वाल व कुमाऊं के मध्य बसे नंद केसरी गांव में मां नंदा का पौराणिक मंदिर है। यहां की बोली भाषा एवं रीति रिवाज भी कुमाऊं से मिलते हैं। नंदा देवी के जागरों में वर्णित किया गया है कि, मां पार्वती ने अपनी आंखों के केसों को झाड़कर केसरी देवी काे उत्पन्न किया था। उनके नाम पर इनका नाम नंद केसरी हुआ। इसी स्थान पर नंदा देवी की ऐतिहासिक राजजात यात्रा के समय गढ़वाल और कुमाऊँ की देव डोलियों और छतोलियो का मिलन होता है।
वस्तुतः नंद केसरी जनपद चमोली के ब्लाक थराली और देवाल के मध्य सड़क मार्ग के दोनों ओर बसा हुआ एक गांव है। यहां पर मां नंदा देवी का पौराणिक मंदिर है।मंदिर की प्रमुख विशेषता है कि इस मंदिर में पूजा ठाकुर पुजारी करते हैं। किवदंती है कि पिंडारी ग्लेशियर से निकलने वाली पिंडर नदी के किनारे एक दैत्य से छिपकर मां नंदा यानी मां पार्वती नदी किनारे गुफा में छिप गई थीं, उस गुफा के मुंह पर रखा गया पत्थर दैत्य ने अपने सींग से फाड़ दिया था, यह पत्थर आज भी वहीं पड़ा है
बता दें कि, इस मंदिर में कई पौराणिक मूर्तियां हैं, जिनमें भगवती नंदा की मूर्ति, शंकराचार्य काल, पांडवों के समय की मां काली की मूर्ति विराजमान हैं। लाटू देवता लिंग रूप में स्थित हैं। बासुदेव जी की आधी मूर्ति है, अष्टभैरव लिंग स्वरूप में हैं। यहां एक विचित्र संयोग है कि, मंदिर परिसर में एक विशाल वृक्ष है, जिसकी उम्र का सही अनुमान नहीं लग पाया है, लेकिन पांच प्रकार के वृक्ष जिसमें सुरई, पैयां, पिलुखा, आकाश बेल और आम हैं। ये पांचों वृक्ष एकसाथ उगे हैं यानी इनकी एक ही जड़ दिखाई देती है। हालांकि 1972 में बज्रपात की वजह के वृक्ष के कुछ हिस्से को नुकसान पहुंचा था। पेड़ के चारों और चबूतरा बना है। माना जाता है कि यह मां नंदा का निवास स्थल है।
स्थानीय जनता के अनुसार महिलाएं इस वृक्ष के चारों ओर रक्षा सूत्र बांधकर मनौतियां मांगती है इस वृक्ष की जड़ और तने के हिस्सों पर प्राकृतिक रूप से कुछ ऐसी आकृतियां उभरी हुई हैं जो देव आकृतियों सी प्रतीत होती हैं स्थानीय लोगो के मुताबिक मंदिर परिसर में कई पत्थर ऐसे भी हैं जिनपर विभिन्न आकृतियां और लिखावट है जिसे कोई पढ़ नही पाया ग्रामीणों की सरकार से मांग है कि पुरातत्व विभाग की टीम मंदिर परिसर में रखे गए पत्थरो की उम्र उनकी लिखावट, उन पर गढी आकृतियों और मंदिर परिसर में विशाल वृक्ष पर उभरी आकृतियों का अध्ययन कर इस पौराणिक मंदिर से जुड़ी मान्यताओं पर सर्वेक्षण करे और उसके बाद इस पौराणिक धरोहर को संरक्षित किया जा सके।