उत्तराखंड पंचायत चुनाव से पहले किसान मंच प्रदेश अध्यक्ष की हुंकार “खेत बचाने हैं तो पूंजीपतियों की भाजपा सरकार को गांव से हटाना होगा,कांग्रेस से भी प्रश्न करने का अनुकूल समय
उत्तराखंड पंचायत चुनाव की सरगर्मियों के बीच उत्तराखंड किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष ने राज्य के युवाओं और ग्रामीणों से सीधी अपील करते हुए कहा कि “अगर खेत बचाने हैं, गांव बचाने हैं तो पूंजीपतियों की भाजपा सरकार को गांव की सत्ता से हटाना ही होगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस संघर्ष में किसी राजनीतिक पार्टी, विशेषकर कांग्रेस से उम्मीद करने के बजाय युवाओं और समाज को अपने ही कंधों पर यह लड़ाई लड़नी होगी।
प्रदेश अध्यक्ष ने भाजपा को “पूंजीपतियों की पार्टी” करार देते हुए आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार पहाड़ी क्षेत्रों और ग्रामीण जीवन को समाप्त करने पर तुली है। उन्होंने कहा कि पहाड़ों के गांव खाली होते जा रहे हैं, खेती बंजर होती जा रही है, और स्थानीय लोगों की भूमि पर बाहरी लोगों के आलीशान घर बन रहे हैं। सरकार न तो पलायन रोकने को गंभीर है, और न ही ग्रामीण कृषि को पुनर्जीवित करने में रुचि ले रही है।

विपक्ष भी निष्क्रिय, कांग्रेस से नहीं उम्मीद – स्वयं का सहारा बनें युवा
उन्होंने विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि राज्य में विपक्ष मृत अवस्था में है। कांग्रेस न तो सरकार के खिलाफ प्रभावी भूमिका निभा पा रही है और न ही गांवों की चिंता उसके एजेंडे में है। ऐसे में युवाओं को स्वयं आगे आना होगा, पंचायतों की राजनीति में भागीदारी करनी होगी। उन्होंने युवाओं से अपील की कि चुनाव लड़ने वाले युवाओं को हर स्तर पर सहयोग दें और जो स्वयं चुनाव नहीं लड़ सकते, वे उम्मीदवारों को तैयार करें।
पंचायत चुनावों को लेकर हलचल तेज, आपत्ति के लिए 2 दिन शेष
इस बीच राज्य में पंचायत चुनावों की तैयारियाँ जोरों पर हैं। अंतिम प्रत्याशी सूची के जारी होते ही चुनावी सुगबुगाहट तेज हो गई है। आयोग की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार आज और कल के भीतर नामांकन पर आपत्तियाँ दर्ज कराई जा सकती हैं।
किसान मंच की अपील – जीत-हार नहीं, उपस्थिति हो उद्देश्य
उत्तराखंड किसान मंच ने युवाओं से पंचायत चुनावों को केवल राजनीतिक लड़ाई न मानते हुए इसे “गांव बचाओ आंदोलन” की तरह लड़ने की अपील की “चुनाव जीतने या हारने से अधिक ज़रूरी है कि युवा अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं। यह चुनाव केवल पद के लिए नहीं, बल्कि पहाड़ की पहचान और खेतों की रक्षा के लिए है।”
पंचायत चुनाव उत्तराखंड की सामाजिक-सांस्कृतिक दिशा तय करने में निर्णायक हो सकते हैं, किसान मंच की अपील राजनीतिक हलकों में हलचल पैदा करने वाली है। अब देखना होगा कि कितने युवा इस आह्वान पर मैदान में उतरते हैं और गांवों को पुनः जीवित करने के इस संघर्ष में अपनी भूमिका निभाते हैं।