गैरसैंण का इतिहास और राजधानी की मांग
दूधातोली क्षेत्र को लेकर राज्य आंदोलन से ही स्थायी राजधानी की मांग उठती रही है। स्वतंत्रता सेनानी वीरचंद्र सिंह गढ़वाली ने सबसे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग की थी। वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड राज्य बना तो राजधानी के मुद्दे को आयोग के हवाले कर दिया गया।
2012 में विजय बहुगुणा सरकार ने गैरसैंण को फिर सुर्खियों में लाया और 2014 में यहां पहला विधानसभा सत्र टेंट के नीचे आयोजित हुआ। इसके बाद 2015 में विधानसभा भवन निर्माण की नींव रखी गई।
राजनीतिक दलों के लिए गले की फांस
गैरसैंण को लेकर राजनीतिक दल हमेशा उलझे रहे हैं। 2020 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया और 25 हजार करोड़ का बजट भी प्रस्तावित किया, लेकिन 5 साल बाद भी न तो बजट पर कोई काम हुआ और न ही क्षेत्र का विकास हो पाया।
अब तक के विधानसभा सत्र
पिछले 11 सालों में गैरसैंण में सिर्फ 9 सत्र हुए –
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2014: 9 जून से 3 दिन
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2015: 2 नवंबर से 2 दिन
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2016: 17 नवंबर से 2 दिन
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2017: 7 दिसंबर से 2 दिन
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2018: 20 मार्च से 6 दिन
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2020: 3 मार्च से 5 दिन
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2021: 1 मार्च से 6 दिन
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2023: 13 मार्च से 4 दिन
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2024: 21 अगस्त से 3 दिन
सबसे लंबे 19 दिन का सत्र त्रिवेंद्र सरकार में हुआ। वहीं हरीश रावत सरकार में 4 दिन, बहुगुणा सरकार में 3 दिन और धामी सरकार में दो बार 7 दिन के सत्र आयोजित हुए।
जनता की उम्मीदें अब भी अधूरी
लंबे समय से गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग उठ रही है, लेकिन सरकारें अब तक ठोस निर्णय लेने में नाकाम रही हैं। कभी ठंड का बहाना, तो कभी राजनीतिक खींचतान—इन सबके बीच जनता अब भी इंतजार कर रही है कि गैरसैंण को उसका हक कब मिलेगा।