आज की बड़ी खबर यह है कि लंबे समय से भ्रष्टाचार के लिए खासी चर्चित सहकारी बैंकों की चतुर्थ श्रेणी के पदों पर की जा रही भर्ती प्रक्रिया पर रोक लग गई है।
उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय मीडिया प्रभारी शिवप्रसाद सेमवाल काफी लंबे समय से सहकारी बैंकों में हो रही इस भर्ती घोटाले के खिलाफ विरोध कर रहे थे। कई बार सरकार और शासन को ज्ञापन भी दिया गया था। लेकिन तब कोई कार्यवाही नहीं हो पाई थी।
अब नयी सरकार मे इसका संज्ञान लेते हुए सहकारी समितियां के निबंधक आलोक कुमार पांडे ने आज आदेश जारी करते हुए इन भर्ती प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है और इसकी कॉपी सहकारी बैंकों के सचिव अपर मुख्य सचिव सहित तमाम सचिवों और अध्यक्षों को दे दी गई है।
गौरतलब है कि कुछ समय पहले हरिद्वार में हो रही सहकारी बैंकों की फोर्थ क्लास भर्ती पर भाजपा के पूर्व विधायक सुरेश राठौड़ ने सवाल उठाया था। इस पर हरिद्वार में भर्ती प्रक्रिया रोक दी गई थी लेकिन अन्य जिलों में यह भर्ती प्रक्रिया चालू रखी गयी।
अकेले देहरादून में फोर्थ क्लास की भर्तियों के लिए ₹10लाख से 15 लाख रुपए लिए जाने की चर्चाएं बेहद गर्म है।
इसके साथ ही उत्तरकाशी और टिहरी सहित कुमाऊं की भी तमाम जिला सहकारी बैंकों में चतुर्थ श्रेणी की भर्तियों पर व्यापक स्तर पर रिश्वत के लेनदेन की चर्चाएं गर्म थी। इसका संज्ञान लेते हुए भर्ती प्रक्रिया रोक दी गई है।
एक चर्चा यह भी है कि जहां भर्तियां सहकारी बैंकों के निदेशकों ने अपने स्तर पर ही निपटा दी थी इसमें सहकारी विभाग के मंत्रालय और शासन को भी विश्वास में नहीं लिया गया था।
संभवतः सहकारी बैंकों के निदेशकों को लगा होगा कि अब तो सरकार चली गई है इसलिए भाजपा सरकार नहीं आएगी और विभागीय मंत्रालय को विश्वास में लेकर कोई फायदा नहीं है।
कयास लगाए जा रहे हैं कि रिश्वत के पैसे के बंटवारे से बचने के लिए सहकारी बैंक के प्रबंधन ने यह भर्तियां अपने स्तर पर ही निपटा दी लेकिन भाजपा की सरकार दोबारा आज आने पर भाजपा सरकार को यह बात नागवार गुजरी है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि यह भर्तियां सिर्फ निरस्त होती है अथवा इन भर्तियों को करने वालों पर भी कोई गाज गिरती है !
देहरादून में इस बात की भी चर्चा है कि भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगने की भनक मिलते ही देहरादून कोऑपरेटिव बैंक के निदेशकों ने तत्काल अपने चहेतों को जॉइनिंग भी दिलवा दी ताकि बाद में कोई दिक्कत ना हो। बात की भी चर्चा है कि दस्तावेजों के सत्यापन में निदेशकों ने अधिकारियों को साइड करके खुद ही अपने चहेतों को चयनित कर दिया यदि कुछ गड़बड़ी हुई तो ऐसे में अधिकारियों का भी फसना तय है।
बहरहाल चर्चा इस बात की भी है कि इन भर्तियों के लिए रिश्वत देने वालों का पैसा अब फंस सकता है।