दुखद :- नहीं रहे उत्तराखण्ड के पहले डांसर कोऑर्डिनेटर
पूरन थापा, गढ़वाली फिल्म जगत में शोक की लहर
रिपोर्ट – अनुज जोशी
आज पूरण चला गया।वैसे तो अधिकांश उत्तराखण्ड फ़िल्म अल्बम से जुड़े लोग पूरण को जानते हैं, पर सच ये है कि बहुत कम लोग उसके बारे में वास्तव में जानते हैं,कम ही उम्र में अपने माता पिता को खो चुका था पूरण, फिर भी ग्रेजुवेशन किया और मंचों के लिए नृत्य ग्रुप बनाकर अपने कलाकार मन को तुष्ट करता था, 2003 के दौर में शुभम नाम से एक नृत्य संस्था चलाकर लोकनृत्य आदि में हिस्सा लेता था, 15-20 लड़के लड़कियों का ग्रुप था उसका, 2004 में मुझे किसी ने मिलाया उससे,मैने उसे कहा कि उत्तराखण्ड में एक छोटी फ़िल्म व इंडस्ट्री खड़ी होने वाली है, CD का दौर आ चुका है, तुम इसमें ध्यान दो, मंच में उतना पैसा नही मिलेगा। मेरी फिल्म हन्त्या में एक ग्रुप डांस का गीत उसने कोरियोग्राफ़ किया, जिसमे कुल 24 बच्चे थे, इसके साथ ही उसको सभी गढवाली अल्बम में ग्रुप लेकर बुलाने लगे। एक वक्त ऐसा आया कि उसके ग्रुप में 100 से अधिक बच्चे थे, 6-7 अल्बम की शूटिंग एक साथ चल रही होती थी और हर जगह उसीके ग्रुप के डांसर होते थे। एक तरह से वो उत्तराखण्ड का पहला डांसर कोऑर्डिनेटर था। बाद में मैंने उसको प्रोडक्शन में जाने की सलाह दी। और उसने शुरू में गढवाली फिल्मों व बाद में बॉलीवुड के प्रोजेक्ट्स के लिए लोकल प्रोडक्शन शुरू किया। 2006 में नीलम से मिलने के बाद उसका जीवन थोड़ा सम्भला,और 2006 से 2012 तक स्थिति ये थी कि कोई भी हमारी फ़िल्म अल्बम इंडस्ट्री का बन्दा पहाड़ से देहरादून आता था तो ठहरता इन्हींके घर था। पूरण व नीलम प्रेम से उसका सत्कार करते। उस दौर का शायद ही कोई बड़ा छोटा नाम इस इंडस्ट्री में होगा, जिसने इनका आतिथ्य ना भोगा हो। मैंने उससे कहा कि इतना राशन कहां से लाता है तो बोला कि भगवान देता है। आज जब वो अस्पताल में लाचार पड़ा था, तो मुझे बस एक संतोष है कि हमारी अधिकांश फ़िल्म इंडस्ट्री के लोग साथ देने के लिए खड़े हो गए, कइयों ने मुझे कॉल किये कि पूरण को जिस हॉस्पिटल में ले जाना हो ले जाओ, खर्चे का बंदोबस्त हो जायेगा। पहली बार कनिष्क अस्पताल के बाहर मैने अपनी इस छोटी सी लुटी पिटी इंडस्ट्री की ताकत देखी, मेरा इतना हौसला बढ़ गया था कि यदि किसी और बड़े अस्पताल के डॉक्टर यदि थोड़ा भी उम्मीद बताते तो हम इस इंडस्ट्री की सपोर्ट के दम पर बड़े खर्च का इंतजाम करने के लिए भी तैयार थे। पर पूरण ने वो मौका ही नहीं दिया। लक्खीबाग श्मशान में उसे विदा करके आने के बाद भारी मन से ये लिख रहा हूँ। हर उस शख्स का शुक्रिया जो इस बुरे समय मे पूरण व नीलम के साथ खड़ा था। दोस्तों वो तो चला गया पर नीलम के साथ हमे खड़े होना है। क्या इंडस्ट्री के मेरे मित्र कम से कम इस बारे में सोचेंगे कि नीलम व उनकी बच्ची के लिए तो सोचना ही है साथ ही ये भी सोचना होगा कि ये दिन किसी पर भी आ सकता है, क्या इसके लिए हम पहले से कोई तैयारी मिलकर नहीं कर सकते…