पंकज कपूर
देहरादून। पशुपालन एवं मत्स्य विभाग की मंत्री रेखा आर्या ने हस्तक्षेप से एक खास बातचीत के दौरान बताया कि मत्स्य पालन में हमारा फोकस ट्राउट मछली पर है। हम लोग ट्राउट को बढ़ावा देना चाह रहे हैं। जो हमारे जिले या जनपद 4000 फीट की ऊंचाई पर है। वहां पर हम खासकर ट्राउट को बढ़ावा दे रहे है। ट्राउट के रेसविज़ वगैरह बनवा रहे हैं। इसके लिए विभाग के माध्यम से और नाबार्ड के माध्यम से इसके बजट की व्यवस्था हम लोग कर रहे हैं और ऐसे हमारे बहुत सारे मत्स्य पालक हैं, जिनको हम लोग सब्सिडी भी दे रहे हैं। ट्राउट की जिस तरह से आज अधिक से अधिक जो मांग बढ़ रही है, उस मांग को हम पूरा कर सके। इसलिए इसको हम बढ़ावा दे रहे हैं। इसमें 40 फ़ीसदी सब्सिडी भी हम लोग देने का काम कर रहे हैं। इसके साथ ही महिलाओं की भी रुचि इस दिशा में बड़े कि वह मत्स्य पालन कर सकें तो उनके लिए भी हम लोगों ने महिला जल कृषि योजना को पहले प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया है।
फिर इसमें हमने महिलाओं को फ्री ऑफ कॉस्ट ( Free Of Cost ) पोंड्स बनाकर के दिए, और हमने उनको मत्स्य बीज भी उपलब्ध कराएं जो उनकी जलवायु के अनुकूल प्रतीत होती है। वहीं फिशेस भी हमने उनको उपलब्ध कराई, जैसे फिंगरलिंग्स हमने उपलब्ध कराई। आज सफलता के रूप में अल्मोड़ा जनपद में भी और सफलता के रूप में थोड़ा गढ़वाल में, पौड़ी जनपद में, दोनों योजनाएं बढ़िया तरीके से चल रही हैं। इससे महिलाएं तरक्की में भी है। इसके साथ ही हमारा यह मानना है कि किस प्रकार से हम जल कृषि को और अधिक उत्पादन की दिशा में ले जा सके और किस तरीके से रेड मीट की जगह लोग फिशरी को अपनाएं। तो इसके लिए हमने उनको समय-समय पर प्रेरित करने के लिए मोबाइल फिश आउटलेट वैन चालू की। जिसके माध्यम से हमारे जो बेरोजगार हैं उन्हें रोजगार भी प्राप्त हुआ और आम जनों को फिश के विभिन्न प्रोडक्ट्स खाने को भी मिले सके। विभिन्न ब्रांड्स में भी हम लोग हर साल एक नया राजस्व कलेक्ट कर रहे हैं। इससे हर प्रतिवर्ष राजस्व बढ़ेगा। जिसके लिए हम लोग निरंतर प्रयास कर रहें है कि किस तरह से मत्स्य के मामले में हम लोग आत्मनिर्भर हो सकें।
हम लोगों ने हिमाचल से अभी कुछ समय पहले फिश की सीड्स ट्राउट फिश की सीड्स हम लोग हिमाचल से लेकर आए हैं। उसका भी सफलतापूर्वक प्रयोग यहां पर हुआ है। और इसके साथ ही मैं यह भी कहना चाहूंगी कि, महासीर के लिए भी हम लोग प्रयास में लगे हुए हैं, क्योंकि हम देख रहे है कि, जिस प्रकार से नदियों में महासीर की उपलब्धता और कम होती जा रही है, उस को बढ़ावा देने के लिए हम लोग अपने हैचरिस में महासीर का उत्पादन कर रहे हैं, और साथ ही हम उन महासीर को नदियों में छोड़ने का काम कर रहे है। साथ-साथ में नदियों के बीच में हमने पांच-पांच किलोमीटर्स के रूप में उन्हें बाँट दिया है। जिसके लिए हमने लोगों को प्रेरित भी किया है, और महासीर हो या अन्य मछलियां हो उनको अलग तरीके से न मारा जाए, जैसे चुना देकर न मारा जाए या करंट देकर मछलियों को न मारा जाए इस सब में भी हम विशेष रूप से सावधानी बरत रहे हैं। अगर किसी के मालिकाना हक में 5-5 किलोमीटर की नदियां आती है तो मत्स्य विभाग उसका संरक्षण भी करेगा और उसका जो दोहन होगा वो भी सही ढंग से लॉजिकल ढंग से उसका दोहन होगा। इस सब के लिए हमने लोगों को प्रेरित किया है।
रेखा आर्या ने बातचीत को जारी रखते हुए यह भी बताया कि पर्यटन पर भी हमने काम किया है। क्योंकि लोगों की जो रुचि है कि जिस भी प्रकार से एंगलिंग के माध्यम से, रुचिकल ढंग से, आप एंगलिंग भी कर सकते हो और फिश भी ले सकते हो एवं लॉजिकल ढंग से सरकार के राजस्व में भी बढ़ोतरी कर सकते हो। इसके लिए हम लोगों ने निरंतर प्रयास जारी किए हुए है।
मैं यह भी बताना चाहूंगी कि, 10 जुलाई को मत्स्य डे पर हम लोगों ने मोबाइल फिश आउटलेट वैन को भी लांच किया है, क्योंकि हमारा यही प्रयास है कि मत्स्य को लेकर के सभी लोगों के मन में रुचि बने और इस विभाग के प्रति लोगो की रुचि और जागरूकता या फिर मैं कहना चाहूंगी कि जो अवेयरनेस होनी चाहिए वो कम है, इसलिए इसके लिए हम निरंतर प्रयास में लगे हुए है। मैं समझती हूँ कि, पशुपालन, मत्स्य और कृषि अगर हम इन तीनो चीजों (विभागों) को मिलाते है तो जो आज अगर हम डबल इनकम की बात करते है, वही आने वाले कल में हम ट्रिपल इनकम की और बढ़ सकते है।
पहाडों की या तराई क्षेत्र की अगर हम बात करें तो मत्स्य पालन वहीं सम्भव है, जहां पानी की उपलब्धता है। इसके लिए हम वहाँ के लोगों को लगातार प्रेरित करते है कि आप वहाँ पोंड्स बनाएं। सरकार की तरफ से जो अनुसूचित जाति वर्ग का व्यक्ति है, उसको 60 प्रतिशत और जो सामान्य जाति का है उसको 40 प्रतिशत की छूट देकर हम लोग लाभार्थियों को योजना का लाभ देते है, ताकि उस पर अत्यधिक भार न पड़ सके। इसके साथ ही समय दर समय पर हम लोगों को प्रशिक्षण देने और साथ ही विभाग की जो रायशुमारी है, जैसे उनको चाहे सीड्स चाहिए हो या फीड्स चाहिए हो वो उनको उपलब्ध कराना और इस प्रकार उन लाभार्थियों के साथ हमारा विभाग जुड़ा रहता है। इसी तरह से वो लोग आमदनी भी कर रहे है। आप देखेंगे कि गाँव की जो महिलाएं है, जिनको जल कृषि योजना से जोड़ा गया था, आज वो 6 हजार रुपए महीने की आमदनी कर रही है।