हार के बाद छलका हरदा का दर्द।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लगता है अभी तक चुनाव में अपनी और कांग्रेस की करारी हार से उबर नहीं पाए हैं। अब हरीश रावत 10 दिन गंगा तट पर मां गंगा से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगना चाहते हैं।
लालकुआं से हार का स्वाद चखने वाले हरदा कहते हैं- कितना अजीब है मैंने पूरी पार्टी के लिए उत्तराखंडियत का एक कवच तैयार किया, जिस कवच का भेदन भाजपा नहीं कर पाई और प्रधानमंत्री जी को खुद टोपी पहनकर उत्तराखंडियत के महत्व को स्वीकारना पड़ा, मगर मैं उत्तराखंडियत के मायके लालकुआं में बुरी तरीके से पराजित हो गया, ऐसा लग रहा है जैसे चुनकर के मुझे बूथ दर बूथ दंडित करने का वो इंतजार कर रही थे।
हरदा ने आगे कहा- जीत-हार होती है, मगर विचार की हार नहीं होनी चाहिए। लेकिन मेरा मानना है जो विचार 2014 में मैंने इनसेट किया/आगे बढ़ाया, वही विचार उत्तराखंड में पलायन, बेरोजगारी, गरीबी, खाली होते गांवों की जिंदगी आदि का समाधान है।
पूर्व सीएम ने कहा- मैं किसी को न हरिद्वार व उधमसिंहनगर के और न कहीं सीमांत जनपदों के लिये कोई नया ऐसा विचार लेकर के आगे बढ़ता हुआ नहीं देख रहा हूं, जिसके आधार पर कहा जाए कि उत्तराखंड इस पर बढ़ते हुए अपनी चुनौतियों का समाधान निकालेगा, तो मैं माँ गंगा, भगवान शिव से यह जरूर प्रार्थना करूंगा, भगवन आप गंगा के जल से जलाभिषेसित होकर जरा मार्गदर्शन करिए, कहीं जिन बातों को मैं कह रहा हूं, उनसे इतर तो कुछ समाधान उत्तराखंड की समस्याओं का नहीं है!