Report -vijay rawat
देहरादून में बन रही बड़ी-बड़ी कंस्ट्रक्शन साइट को भवन निर्माण प्राधिकरण का खूब सहारा मिल रहा है। गलत तरीके से हो रहे भवन निर्माण को रोकने के लिए बनाया गया प्राधिकरण अब खुद ही बड़ी-बड़ी बहुमंजिला इमारतों के नक्से बिना नियम देखे चुटकियो में पास करने वाला प्राधिकरण हो गया है, और दूसरी तरफ ज़ीरो टोलरेंस के जुमले में आलम यह है कि बड़े अधिकारियों से शिकायत करने के बाद भी इसमे कोई कार्यवाही नही होती।
मामला सहस्त्रधारा रोड़ कुल्हान में बन रहे कि अरबों के प्रोजेक्ट पेसेफिक गोल्फ स्टेट का है जिसके अंदर बन रहे अपार्टमेंट भवन निर्माण मानकों को ठेंगा दिखाते नज़र आते है। नियमों के अनुसार यहाँ पहाड़ो में भवनों की अधिकतम ऊंचाई 12 मीटर भूतल व 3 तल है और मैदानी में 30 मीटर यानी अधिकतम भवनों की ऊँचाई 9 तल है यदि मैदानी क्षेत्र में 18 मीटर रोड हो तभी आप अधिकतम ऊंचाई 9 मंजिल नक्से पास करवा सकते है। मगर वहीं इन सभी नियमों को ताक में रखकर पेसेफिक गोल्फ के अंदर 10 से 11 मंजिल इमारत खड़ी ढाल पर तैयार हो रहे है जबकि नियमों के अनुसार 30 डिग्री के ढाल से ऊपर भवन निर्माण नही कर सकते , मगर यंहा लोगों की जान को ताक में रखते हुवे खड़ी ढाल पर ऐसे अपार्टमेंटपर तैयार हो रहे है
जो एक छोटे भूकंप के झटके से कभी भी धरासाई हो सकती है ,जब इसकी शिकायत एमडीडीए के उपाध्यक्ष आशीष श्रीवास्तव से की गई तो उन्होंने इस मामले में जांच कॉमेटी बैठाने की बात कही, मगर जांच कॉमेटी तो दूर की बात उपाध्यक्ष साहब ने कंट्रक्शन साइड में अपने क्षेत्रीय जेई को भेजना भी जरूरी नहीं समझा। इससे साफ पता चलता है कि MDDA का ऐसी नियमों के विरुद्ध बन रहै अपार्टमेंट को खूब संरक्षण प्राप्त है या यूं कहें की रुपयों की खनक के आगे ये अधिकारी अंधे हो गए तो इसमें भी कोई दो राय नहीं होगी । इस विषय मे जब वाडिया के सीनियर भू-वैज्ञानिक डॉ सुशील से पूछा गया कि क्या यहां की मिट्टी में इतनी क्षमता है कि इतनी भारी भरकम बिल्डिंगों का बोझ सह सके तो इसपर डॉ सुशील का कहना था कि यंहा की मिट्टी ज्यादातर रेतीली व चिकनी मिट्टी है और चिकमिट्टी में इतनी क्षमता नहीं होती कि इतनी बड़ी बिल्डिंगों का बोझ झेल पाये इसलिए भवन निर्माण विभाग के नियम वैज्ञानिक जांचों के बाद तय गए है ,अगर इससे ज्यादा भार इस मिट्टि में डाला जाता है तो ऐसी बिल्डिंगे कभी भी बड़े हादसे का शिकार हो सकती है। डॉ सुशील ने ऐसे भवन निर्माणों पर आपत्ति भी जताई है और कहा कि ऐसे निर्माणों की परमिशन देना लाखों लोगों की जान से खेलना है पर जीरो टोलेंरेंस की सरकार और उनके अधिकारियों को किसी की जान से क्या फर्क पड़ता है अगर फर्क पड़ता ऐसे भवन अबतक कबके सीज हो चुके होते।
अब सवाल यह खड़ा होता है कि भविष्य में अगर भूकंप जैसी प्रकृति आपदा से कोई बड़ा हादसा होता है तो क्या इसकी सारी जिम्मेदारी mdda विभाग के अधिकारी लेने को तैयार है जो मीडिया द्वारा संज्ञान में लाये मामले पर चुपी सादे बैठे है।
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