उत्तराखंड वन विभाग को नहीं पता देहरादून के पौंधा में कटा कोई पेड़
– वन विभाग के पास 30 पेड़ों की जानकारी नहीं, पौंधा स्थित दिशा फारेस्ट प्रोजेक्ट का है विवादित मामला
देहरादून : पौंधा स्थित दिशा फारेस्ट प्रोजेक्ट की दिशा-वन और दिशा-टू विवादित जमीन के मामले में अब एक और खुलासा हुआ है। वन विभाग को भी नहीं पता कि पौंधा के विवादित भूमि पर पेड़ काटने की अनुमति दी गयी थी या नहीं। यह खुलासा एक आरटीआई मे हुआ है।
विवादित भूमि से पेड़ काटने की अनुमति संबंधी जानकारी वन विभाग से मांगी गयी थी, लेकिन विभाग से जानकारी मिली है कि पेड़ काटने की अनुमति सूचना धारित नहीं है। उनका कहना है कि भूमाफिया ने मीडिया के सामने स्वीकार किया था कि वन विभाग ने 30 पेड़ काटने की अनुमति दी है। यदि ऐसा है तो वह अनुमति कहां और किसने दी? इस हाईप्रोफाइल मामले की न्यायिक जांच होनी चाहिए थी लेकिन नही हुई।
यहां प्रदेश के 95 से भी अधिक नौकरशाहों ने जमीन खरीदी है। जमीन बेचने वाले बिल्डर आईएस बिष्ट ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से मीडिया के सामने दावा किया कि प्रोजेक्ट में किसी तरह की खामी नहीं है। यह भी कहा गया कि इस भूमि पर महज 30 पेड़ थे, इनको काटने की अनुमति वन विभाग से ली गयी थी।
यह वह जमीन है जहां कई नौकरशाहों को प्लाट दे दिये गये। वन क्षेत्राधिकारी झाझरा रेंज ने इसके जवाब में कहा है कि सूचना धारित नहीं है। यानी विभाग को पता ही नहीं, कि पौंधा में पेड़ थे या नहीं। काटे गये या नहीं।
एडवोकेट विकेश नेगी का कहना है कि यह मामला पूरी तरह से हाईप्रोफाइल है और इसकी उच्चस्तरीय या न्यायिक जांच होनी चाहिए।
तत्कालीन एडीएम शिव कुमार बरनवाल ने अजय गोयल की शिकायत की जांच में भी पाया है कि जमींदारी विनाश अधिनियम 1950 की धारा 161 के तहत इस भूमि को लेकर सहायक कलक्टर प्रथम श्रेणी से अनुमति ली जानी चाहिए थी। विकासनगर सब रजिस्ट्रार कार्यालय से दस्तावेजों की जांच के बाद पता चला कि भूमि को जरूरी अनुमति नहीं ली गयी।
डीएम ने माना, जमीन त्रृटिपूर्ण
पौंधा की विवादित जमीन संबंधी डीएम की रिपोर्ट, जो कि गढ़वाल कमिश्नर को भेजी गयी है। 3 मार्च 2022 को भेजी गयी इस रिपोर्ट में विकासनगर के तहसीलदार की आख्या का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि इसमें विक्रय पत्रों के साथ अनुमति पत्र उपलब्ध नहीं था। इसे त्रृटिपूर्ण माना गया। इसके अलावा बिल्डर आईएस बिष्ट ने यूपी जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 143 का उल्लेख किया। यह उल्लेख त्रिवेंद्र सरकार के समय औद्योगिक उपयोग के लिए की जाने वाली भूमि के लिए प्रावधान था न कि रेजीडेंशियल प्लाट बेचने के संबंध में। एडवोकेट विकेश नेगी के मुताबिक धारा 143 का प्रावधान बाद में खारिज कर दिया गया था। इसलिए बिल्डर का दावा पूरी तरह से गलत है।