कांग्रेस ने पहले ही जताई थी चिंता
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कांग्रेस की चिंता को सही साबित करता है। उन्होंने बताया कि पार्टी ने 6 जुलाई 2025 को राज्य निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर निकाय और पंचायत चुनाव की वोटर लिस्ट में दोहरी प्रविष्टियों का मुद्दा उठाया था।
कांग्रेस ने पहले ही चेताया था कि यदि 10 दिसंबर 2019 के आदेश का पालन नहीं हुआ तो पार्टी कानूनी कदम उठाएगी।
आयोग और सरकार की लापरवाही उजागर
माहरा ने कहा, “हमारी चेतावनी के बावजूद सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग ने समय रहते सही कदम नहीं उठाए। नतीजतन, आज सुप्रीम कोर्ट की फटकार और दंड का सामना करना पड़ा। यह घटना चुनावी निष्पक्षता को लेकर आयोग और सरकार की गंभीर लापरवाही को उजागर करती है।”
वोट चोरी पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर – कांग्रेस
कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य गुरदीप सिंह सप्पल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय दरअसल “वोट चोरी पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर” है।
उन्होंने बताया कि राज्य निर्वाचन आयोग ने उन प्रत्याशियों के नामांकन रद्द करने से इनकार कर दिया था जिनके नाम दो या अधिक वोटर लिस्टों में दर्ज थे। जबकि हाई कोर्ट ने आयोग को नियमों का पालन करने का निर्देश दिया था।
भाजपा पर पक्षपात के आरोप
सप्पल ने आरोप लगाया कि भाजपा ने अपने समर्थकों के नाम नगर निकाय से ग्राम पंचायत की वोटर लिस्ट में शिफ्ट कराकर अनुचित लाभ लेने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि नियम साफ है कि कोई भी मतदाता छह महीने के भीतर अपना वोटर स्थानांतरित नहीं कर सकता।
कांग्रेस नेता ने यह भी जोड़ा कि सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। सरकार और आयोग मूल सवालों के जवाब देने के बजाय विपक्ष पर निशाना साधने में लगे हैं।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल उत्तराखंड की राजनीति बल्कि पूरे देश में चुनावी पारदर्शिता और लोकतंत्र की मजबूती से जुड़ा अहम संदेश देता है। कांग्रेस का कहना है कि यह जीत केवल उनकी पार्टी की नहीं, बल्कि उन सभी मतदाताओं की है जो निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव चाहते हैं।