उत्तराखंड : मामला गुरुवार का है, जब अधिवक्ता अमित तोमर मुकदमे की पैरवी करके उत्तरकाशी से देहरादून लौट रहे थे । लेकिन चंबा के पास पुलिस ने उनकी कार रोकी और सभी कागजात और नियम पूरे होने के बाद भी जबरन उनकी कार का 500 रुपये का चालान काट दिया।
लेकिन जब जुर्माने की राशि भरने के लिए वहां पर तैनात दारोगा दीपक लिंगवाल क्यूआर-कोड थमाते हैं और उस पर चालान की राशि अदा की जाती है तो वह सीधे दारोगा के बैंक खाते में चली जाती है। जबकि अधिवक्ता अमित तोमर ने बेवजह चालान काटने का कारण पूछा और इसका विरोध भी किया था। विरोध करने पर दारोगा पुलिस गिरी झड़ते हुए सरकारी कार्य में बाधा डालने के आरोप में जेल में डालने की धमकी दी । फिर चालान का कागज अधिवक्ता के मुहं पर फेंक कर उन्हें जाने को कहा
बताया जा रहा है कि दरोगा के साथ दो अन्य पुलिस कार्मि भी शामिल थे। पुलिस के इस रव्वये से गुस्साए तोमर ने टिहरी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नवनीत सिंह से आरोपी पुलिस कार्मिकों पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की है।
सूचना अनुसार 177 एमवी एक्ट में किया गया चालान
दारोगा दीपक लिंगवाल ने अधिवक्ता अमित तोमर की कार UK07BV5842 का चलाना मोटर व्हीकल एक्ट-1988 की धारा 177 में किया है। यह धारा तब लगाई जाती है जब यातायात नियमों का उल्लंघन सपष्ट न हो रहा हो। जिसका मतलब यह हुआ कि ऐसा उललंघन जिस पर कोई सीधा-सीधा अपराध न बन रहा हो।
अधिवक्ता अमित तोमर
पुलिस के इस चालान काटने का पूरा वाकया अधिवक्ता अमित तोमर ने सोशल मीडिया पर किया पोस्ट:
उत्तरकाशी कोर्ट में एक मुकदमे में पैरवी कर वाया चंबा (टिहरी) देहरादून लौट रहा था। गाड़ी मेरा ड्राइवर सागर चला रहा था। चंबा पार कर कुछ ही किलोमीटर चले होंगे की देखा कि पुलिस गाड़ियों को रोक उनकी जांच कर रही थी। एक दीवान जी ने हाथ दिया तो हमने भी गाड़ी किनारे लगा दी। मेरा ड्राइवर गाड़ी के सभी कागज़ात लेकर किनारे कुर्सी लगाए एक सिपाही जी के पास पहुंच गया। गाड़ी के सभी कागज़ात पूरे थे तथा गाड़ी चलाते समय मेरे ड्राइवर ने सीट बेल्ट भी पहनी हुई थी तो मुझे लगा कि शीघ्र ही वो लौट आएगा, इसी कारण मैं गाड़ी में ही बैठा रहा। कुछ देर तक जब सागर वापस नही आया तो मैं भी गाड़ी से उतर कर सिपाही जी के समक्ष प्रस्तुत हो गया और अकारण रोकने का कारण पूछा। मैं अभी बात ही कर रहा था कि सिपाही जी ने मुझे 500रुपए का चालान अंतर्गत धारा 177 मोटर वाहन अधिनियम 1988, थमा दिया। मैं भौचक्का रह गया और पूछा की चालान किस कारण किया है तो सिपाही जी ने कहा कि कारण आप बता दो और हंसने लगे। सिपाही जी की ऐसी वाहियात हंसी मुझे चुभी और मैंने पुनः कारण बताने का आग्रह किया। मैने तत्काल उन्हें धारा 177 के प्रावधान अपने मोबाइल पर दिखाए और पढ़ कर सुनाए। सिपाही जी ने एक ना सुनी और साफ कहा कि अब तो चालान काट दिया है, देना ही होगा। सिपाही जी की मेज पर ही एक मोबाइल फोन रखा था। सिपाही जी ने तत्काल उस मोबाइल का क्यू आर कोड दिखाया और मुझे पैसा देने को कहा। मैने विरोध किया तो कुछ दूर खड़े दरोगा जी भी मय दीवान जी आ पहुंचे। दरोगा जी के हाथ में सरकारी ई पेमेंट की मशीन थी।
मैने विनम्रता से दरोगा जी को अपनी बात बताई और अकारण परेशान कर अवैध चालान काटने का विरोध किया। दरोगा जी पूरे पुलिसिया रौब में भरे हुए थे और बोले, ”अब तू बताएगा कि चालान क्यों काटा, तू वकील है क्या”। मैने पुनः आग्रह किया कि मैं कोई वकील नही अपितु एक साधारण व्यक्ति हूं, मेरी गाड़ी के सभी कागज़ात नियमानुसार सही है तो मैं क्यों चालान भरू। दरोगा जी अब क्रोध में भर उठे और कहा कि “इसकी गाड़ी सीज़ होगी, निकलो यहां से, कोर्ट से गाड़ी छुड़ा लेना”। मैने ऐसी अभद्रता का विरोध किया तो मुझे पुलिस कार्य में व्यवधान करने के आरोप में गिरफ्तार करने की धमकी देने लगे। मैं समझ गया कि इस पुलिसिया लूट के समक्ष फिलहाल समर्पण ही सही रहेगा। मैने तत्काल अपने फोन से सिपाही जी द्वारा दिए गए क्यू आर कोड पर 500 रू दे दिए। जब पेमेंट देखा तो वो दरोगा दीपक लिंगवाल जी के निजी खाते में गया था।
मैने पुनः प्रश्न किया की जब आपके पास सरकारी ई पेमेंट मशीन है और आप उस पर अन्य लोगो से चालान वसूल रहे तो किस अधिकार से आप मुझ से चालान का पैसा अपने निजी खाते में ले रहे। मुझ से पहले और मेरे बाद भी सिपाही जी इस क्यूआर कोड पर कई लोगों से पैसा वसूल चुके थे। दरोगा दीपक लिंगवाल जी क्रोधित हो बोले कि “यह भी सरकारी खाता ही है, पैसे दे और निकल, और सुन, अपने ड्राइवर को बोल की साइन कर।” मैं अब दूसरे जोन में चला गया था। साफ कहा कि मेरा ड्राइवर साइन नही करेगा, जब तक आप चालान का कारण नहीं बताओगे।
सिपाही जी, दीवान जी और दरोगा जी पूर्ण रूप से रौद्र रूप में थे। मेरे मुंह पर चालान का कागज़ फैंका और बोले, ” अब निकल, नही तो आज रात तेरी टिहरी जेल में कटेगी।” अभी कुछ दिन पूर्व ही पिताजी की कैंसर की सर्जरी हुई थी और मेरा घर पहुंचना अत्यंत आवश्यक था तो मैंने अपमान भरा खून का घूंट पिया और घर आ गया। आदरणीय डीजीपी साहिब Ashok Kumar जी तथा एसएसपी टिहरी Navneet Singh जी से प्रार्थना है कि ऐसे डग्गामार पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करें। क्या इन पुलिसकर्मियों का यह कृत्य IPC की धारा 390 की परिभाषा में नही आता?? यदि आता है तो उक्त तीनों पुलिस कर्मियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने की कृपा करें