सीएम त्रिवेन्द्र बीमारों को लाये जहाज से, अपने प्रदेशवासियों को सड़कों पर भटकता छोड़ा
ऐसे क़ई प्रश्न हैं, जिनके जवाब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को लाइव आकर देने होंगे।
– नवल खाली
क्या मुख्यमंत्री का इतना ही दायित्व है कि, वो लाइव आकर मटन-चिकन की दुकानें इस लॉकडाउन के दौरान खुलवाने की घोषणा करें। या इसके इतर यह भी कि ऐसे कितने लोग हैं जो इस लॉकडाउन के बाद सड़कों पर बदहवास दिन रात भूखे प्यासे चल रहे है? और अपनों तक पहुंचना चाहते हैं। क्या ये किसी सूबे के मुखिया की जिम्मेवारी नही है कि, ऐसे आंकड़े सार्वजनिक करे कि, कितने उत्तराखंडी विभिन्न प्रदेशों में फंसे हैं। ये इसलिए कह रहा हूँ कि, स्वयं मुख्यमंत्री के तंत्र ने नम्बर जारी करते हुए ये घोषणा की थी कि, ऐसे लोग हमसे संपर्क करें। पर आपके नम्बर हैं कि लगते नहीं।
हास्यास्पद है कि, क़ई लोगो के मेसेज सोशियल मीडिया पर विभिन्न माध्यमो से आ रहे है कि, हम लोग यहाँ फंसे हैं-वहाँ फँसे हैं। जब हमने उनको आपके सार्वजनिक किए नम्बर दिए तो वो निराशाजनक थे। ऐसे लोगो के कोई आंकड़े आपके तंत्र के पास नही हैं क्या? जो पागलों की तरह सड़कों पर भटक रहे हैं। मानते हैं यह महामारी है। पर इस महामारी के बीच बिना तैयारी के एकदम से लॉकडाउन का फरमान आने से आम जनता को ही पिसना पड़ रहा है। उसे कोरोना की उतनी फिक्र नही है, जितनी अपनो से मिलने की, अपने घर पहुंचने की है। भले ही अरबों रुपयों का बजट आप स्वीकृत करवा लो, करोड़ो के मास्क व सेनेटाइजर बंटवा लो, लाखों लोगों के खाते में पैंसे डलवा लो, पर हजारों लोग पगलाए से सड़कों पर भटक रहे है उनका आप क्या करोगे?
आप उनको एक दो टाइम का भोजन भी दे दोगे पर उनको अपने घर जाना है ये उनकी प्राथमिकता है। उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी किए गए नम्बरो पर सबको निराशा ही मिली। आपके सूचना विभाग के अधिकारी क्या सिर्फ विज्ञापनों को सेट करने के लिए ही बैठे हैं कि, सरकार के पक्ष में खबर लिखो और मोटी रकम ले जाओ। अरे उनको भी तो इस काम मे लगवाओ। आपके सलाहकार भी सोशियल मीडिया पर आकर सिर्फ हाथ धोने का ज्ञान पेल रहे हैं। आज मेरे उत्तराखंड का सैकड़ों युवा भूखा-प्यासा सड़कों पर भटक रहा है, उसकी सुध लेने वाला कोई नही।
कद्दू का तंत्र है ये आपका, किसी काम का नहीं
सच बात तो ये है मुख्यमंत्री जी आप इन तीन सालों में भी लोकप्रिय नही बन पाए। आपके लिए उपनाम तक युवाओं ने रख लिया। खैर…. ये ऐसा वक्त है जब गिले-शिकवे सब छोड़कर मानवता को आत्मसात किया जाय। ऐसे वक्त में प्राथमिकता यही होनी चाहिए थी कि, जगह-जगह अटके लोगों को जांच करवा कर उनको घर भेज दिया जाय। जो लोग प्रदेश से बाहर जाना चाहते है उनको भी उनके प्रदेश की सीमा में छोड़ा जाय।
कितना वक्त लगता है इस प्रक्रिया में?
अब तो लोग ये भी कह रहे हैं कि, जब मटन-चिकन की दुकानें खुलवाने का एलान कर ही चुके हो तो सुरा का भी इंतजाम करवा दो। घर मे पड़े-पड़े शौकीनों के हालात खराब हैं। और ये आप जल्द करवा भी लोगे, क्योंकि राजस्व में भी कमी नही आनी चाहिए। कुल मिलाकर देखा जाय तो अभी भी वक्त है लोकप्रिय बनने का। जो भी उत्तराखंडी जहां फंसे है उनको घर तक पहुंचवा दो, एहसान मानेंगे आपका।