उत्तराखंड : उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में फर्जीवाड़े का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जाली दस्तावेज़ों के सहारे सरकारी नौकरी हथियाने का ऐसा खेल खेला गया कि मेहनत करने वाले पहाड़ के युवाओं का हक खुलेआम छीना गया। सहायक अध्यापक की भर्ती में बाहरी राज्यों से आए लोगों ने फर्जी प्रमाणपत्रों के दम पर मेरिट सूची में घुसकर सरकारी शिक्षक की कुर्सी तक कब्जा ली।
वर्ष 2024 में उत्तराखंड में डीएलएड धारकों के लिए प्राथमिक शिक्षा में सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई। ऊधमसिंह नगर में 309 पदों में से 256 नियुक्तियां हुईं। लेकिन चौकाने वाली बात यह रही कि इनमें से लगभग 40 शिक्षक उत्तराखंड के नहीं, बल्कि फर्जी दस्तावेज़ों के जरिए खुद को उत्तराखंड निवासी साबित करने वाले अभ्यर्थी थे।
मतलब साफ है सिस्टम सोता रहा और फर्जीवाड़ा जागता रहा।

जिन युवाओं ने कड़ी मेहनत कर मेरिट हासिल की, वे बेरोजगार बैठे रहे, जबकि जाली कागज़ों वाले आराम से सरकारी नौकरी का खुशकिस्मती भरा टोकन ले उड़े
उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2017 में साफ आदेश दिया था कि डीएलएड प्रशिक्षण वही कर सकता है, जो यूपी का स्थायी निवासी हो। लेकिन ऊधमसिंह नगर में तैनात इन 40 अध्यापकों ने यूपी में डीएलएड किया, वहां स्थायी निवासी प्रमाणपत्र लगाया, और फिर भर्ती निकलते ही जादू की छड़ी घुमाकर खुद को उत्तराखंड निवासी दिखा दिया।
एक ही इंसान, दो राज्य… और दो स्थायी निवास!
अब शिक्षा विभाग की नींद खुली है और ये 40 सहायक अध्यापक जांच के दायरे में हैं।
सवाल ये भी उठता है कि तहसील प्रशासन ने आखिर किन कागजों के आधार पर उन्हें उत्तराखंड का स्थायी निवास प्रमाणपत्र जारी कर दिया?
कुर्सी पाने का ये खेल न सिर्फ योग्यता को ठेंगा दिखाता है, बल्कि उन युवाओं के साथ विश्वासघात है, जो ईमानदारी से परीक्षा में पसीना बहाते हैं।










