उत्तराखंड में भ्रष्टाचार की खबरें लगातार सामने आते रहती हैं लेकिन सवाल तब गंभीर बन जाते हैं जब इन भ्रटाचार के सबूत होने के बाद भी जांच नहीं होती और भ्रष्ट नेता अधिकारी कुर्सियों पर रहकर अपनी ताकत का अंदाजा ग्रामीणों को दिखाते हैं,चौखुटिया भटकोट ग्रामसभा का घोटाला और लटकी जांच कुछ ऐसा उदाहरण पेश करती हैं।
यहां के एक स्थानीय युवा ने ग्रामसभा में हुए कार्यों को लेकर जब सूचना मांगी तो देखा कि 2019-2024 पंचायती कार्यकाल में ही लगभग 20 लाख से अधिक का घोटाला किया गया हैं और राजकीय वित्त एवं केंद्रीय वित्त जो गांव के विकास के लिए आया उसे निजी इस्तेमाल किया गया विकास कार्यों के नाम पर सिर्फ लीपा पोती कर दी गई,इसे लेकर जागरूक युवा चंदन सिंह द्वारा जिलाधिकारी अल्मोड़ा एवं मुख्य विकास अधिकारी को पत्र लिखकर 25 बिंदुओं पर थर्ड पार्टी जांच कराने को अनुरोध किया गया एवं ग्राम प्रधान एवं ग्राम विकास अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही करने की मांग की गई।
लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि अधिकारियों द्वारा अबतक धरातल पर जांच कर रिपोर्ट नहीं बनाई गई हैं और शिकायकर्ता को जांच अधिकारी फोन कर बताती हैं कि कल वह जांच के लिए आएंगी फिर अचानक देर शाम वह खुद को दबाव में महसूस होने की बात करने लगती हैं और जांच से उन्हें को दूर रखने का अनुरोध शिकायकर्ता से करने लगती हैं,इससे पता चलता है कि गांव में हुए भ्रटाचार में पूरा तंत्र शामिल हैं और जांच नहीं होने देना चाहता यदि इसी तरह से राज्य और केंद्र के वित्त को प्रधान और अधिकारी बर्बाद करते रहेंगे तो गांव में विकास कैसे होगा,जिन्हें गांव के विकास की जिम्मेदारी सौंपी हैं वह खुद विकास की बाधा बने हुए हैं।
मामले का खुलासा किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष किसान पुत्र कार्तिक उपाध्याय द्वारा चौखुटिया पहुंचकर चंदन सिंह से मुलाकात करने के बाद किया गया,उन्होंने एक वीडियो के जरिए इस मामले का खुलासा किया उनसे बात करने पर उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के गांव गांव में भ्रष्टाचार में नेता अधिकारी शामिल है लेकिन चिंता का विषय यह है कि भ्रष्टाचार के सबूत होने के बाद भी जांच नहीं हो रही और जिम्मेदार अधिकारी कुर्सियों पर जमे हुए,इस तरह से उत्तराखंड के गांव का विकास होना संभव नहीं,उन्होंने कहा है कि यदि जल्द जांच नहीं होती है तो सभी अधिकारियों के नाम सहित न्यायालय में याचिका दायर की जाएगी,उन्होंने अगले एक सप्ताह में जांच न होने पर न्यायालय जाने की बात कही है।
वही शिकायतकर्ता चंदन सिंह ने बताया कि लगातार उनके ऊपर शिकायत वापसी लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है और जो अधिकारी सही तरीके से जांच करना चाहते हैं उन पर कहीं ना कहीं उच्च अधिकारियों द्वारा दबाव बनाकर परेशान कर दिया जा रहा है,यदि यह भ्रष्टाचार नहीं होता तो उनका गांव 5 साल 10 साल अधिक प्रगति कर चुका होता।
अब सवाल सरकार और प्रशासन दोनों पर ही खड़े होते हैं कि भ्रष्टाचार के सबूतों सहित खुलासे करने के बाद भी यदि न्यायालय की शरण ही बार बार राज्य के नागरिकों को जाना पड़ेगा तो आखिर जीरो टॉलरेंस कहां हैं प्रशासनिक अधिकारियों का क्या काम?